नकली नोट फैक्ट्री का भंडाफोड़: बेरोजगारी, सोशल मीडिया और पॉप-कल्चर के खतरनाक गठजोड़ की कहानी



देश की व्यापारिक राजधानी कहे जाने वाले इंदौर में हाल ही में एक सनसनीखेज खुलासा हुआ है। शहर के एक प्रतिष्ठित होटल में नकली नोटों की एक पूरी "फैक्ट्री" चल रही थी वो भी न सिर्फ तकनीकी दक्षता के साथ, बल्कि हैरान कर देने वाली योजनाबद्धता के साथ। क्राइम ब्रांच की टीम ने होटल के कमरे में छापा मारकर इस फर्जी नोट रैकेट का पर्दाफाश किया, जिसमें आठ लाख रुपये से अधिक के नकली नोट और नोट छापने का पूरा साजो सामान बरामद किया गया।

'फर्जी' नहीं, हकीकत थी ये फैक्ट्री

शहर के अनुराग नगर एक्सटेंशन स्थित होटल ‘इटर्निटी’ का कमरा नंबर 301 बीते एक माह से तीन युवकों का ‘वर्कशॉप’ बना हुआ था। होटल स्टाफ को लगातार कमरे से आती मशीनों की आवाज़ें, कमरे से बाहर ना निकलने की आदत और डिलीवरी बॉक्स का आना-जाना संदिग्ध लगा। जब होटल प्रबंधन ने मास्टर चाबी से कमरा खोला, तो सामने था एक डिजिटल प्रिंटर, लेमिनेशन मशीन, बटर पेपर, कंप्यूटर और नकली ₹500 के नोटों का ढेर।

इस ऑपरेशन की हैरतअंगेज बात यह रही कि इसका आइडिया किसी परंपरागत अपराध पृष्ठभूमि से नहीं, बल्कि एक ओटीटी वेब सीरीज से आया था। शाहिद कपूर की सीरीज ‘फर्जी’ ने जहां दर्शकों को रोमांचित किया, वहीं इन युवकों के लिए वह एक "प्रेरणा स्रोत" बन गई।

बेरोजगारी से अपराध तक का सफर

इस रैकेट का मास्टरमाइंड अब्दुल शोएब उर्फ छोटू (25), छिंदवाड़ा का रहने वाला है और आर्ट एंड डिजाइन का ग्रेजुएट है। पिता के सिर पर कर्ज और खुद के पास कोई रोजगार नहीं इन हालातों में शोएब ने सोशल मीडिया का सहारा लिया, जहां उसे नकली नोट बनाने की तमाम तकनीकें और यूट्यूब ट्यूटोरियल्स मिले। फेसबुक पर उसकी मुलाकात गुजरात के द्वारका निवासी मयूर चम्पा (25) से हुई, जो एक होटल बुकिंग एजेंट है। मयूर ने ‘फर्जी’ वेब सीरीज देखने के बाद नकली नोट छापने की सोच को गंभीरता से लिया और योजना में शामिल हो गया।

तीसरा आरोपी, स्थानीय निवासी, कथित तौर पर लॉजिस्टिक सपोर्ट और होटल बुकिंग में मदद करता था।

सोशल मीडिया और ओटीटी का खतरनाक मेल

इस प्रकरण ने यह गंभीर प्रश्न खड़ा किया है कि कैसे आज की युवा पीढ़ी, बेरोजगारी और असुरक्षा के माहौल में, सोशल मीडिया और वेब कंटेंट से प्रेरणा लेकर अपराध की दुनिया में कदम रख रही है। यह न केवल कानून-व्यवस्था की दृष्टि से चुनौतीपूर्ण है, बल्कि समाज के उस ताने-बाने के लिए भी चेतावनी है, जहां रोजगार की कमी और डिजिटल प्लेटफॉर्म्स की पहुंच नई चुनौतियां पैदा कर रही हैं।


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