जबलपुर। जिले में शिक्षा के नाम पर अभिभावकों की जेबें काटने वाला निजी स्कूल संचालकों, पुस्तक विक्रेताओं और प्रकाशकों का गठजोड़ अब भी अटूट है। जिला प्रशासन के बार-बार सख्त निर्देशों और पिछले वर्ष की कार्रवाइयों के बावजूद, कुछ निजी स्कूल अपनी मनमानी से बाज नहीं आ रहे। करीब दस स्कूल आज भी एनसीईआरटी की निर्धारित पाठ्यपुस्तकों को दरकिनार कर निजी प्रकाशकों की महंगी और अनावश्यक किताबें छात्रों पर थोप रहे हैं। यह स्थिति न केवल शिक्षा की गुणवत्ता पर सवाल उठाती है, बल्कि प्रशासन की प्रभावशीलता को भी कठघरे में खड़ा करती है।
पिछले वर्ष जिला प्रशासन ने सख्ती दिखाते हुए कई स्कूलों पर कार्रवाई की थी, जिसके बाद अधिकांश स्कूलों ने एनसीईआरटी पाठ्यपुस्तकों को अपनाने का दावा किया था। लेकिन हकीकत इससे उलट है। सूत्रों के मुताबिक, कुछ स्कूलों ने प्रशासनिक दबाव में औपचारिकता पूरी करने के लिए अपनी पुस्तक सूची में दो-तीन एनसीईआरटी किताबें शामिल तो कर लीं, पर व्यवहार में छात्रों को निजी प्रकाशकों की महंगी किताबें ही खरीदने के लिए बाध्य किया जा रहा है। यह गोरखधंधा न केवल अभिभावकों के लिए आर्थिक बोझ बढ़ा रहा है, बल्कि शिक्षा के व्यावसायीकरण की गहरी साजिश को भी उजागर करता है।
इस गठजोड़ से त्रस्त अभिभावकों का सब्र अब जवाब दे रहा है। शुक्रवार को पैरेंट्स एसोसिएशन के सदस्यों ने कलेक्टर कार्यालय पहुंचकर इस मुद्दे पर जोरदार शिकायत दर्ज की। एसोसिएशन के सचिन गुप्ता ने बताया कि प्रशासन द्वारा आयोजित पुस्तक मेले में वे स्वयं स्टॉल पर मौजूद थे, जहां कई अभिभावकों ने शिकायत की कि उनके बच्चों के स्कूलों की निर्धारित किताबें मेले में उपलब्ध ही नहीं थीं। गुप्ता ने यह भी खुलासा किया कि कुछ स्कूलों ने चुनिंदा पुस्तक विक्रेताओं को अपने एजेंट के रूप में नियुक्त किया है, जिसके चलते अभिभावकों को केवल उन्हीं दुकानों से किताबें खरीदने के लिए मजबूर किया जा रहा है। यह व्यवस्था स्कूल संचालकों, विक्रेताओं और प्रकाशकों के बीच गहरे सांठगांठ की ओर स्पष्ट इशारा करती है।
इस अवसर पर प्रवेन्द्र सिंह चौहान, विकास पाल, आमित पलिया, पियूष जैन, अजय तिवारी और नीलम सहित कई अभिभावक मौजूद रहे, जिन्होंने प्रशासन से इस शिक्षा माफिया के खिलाफ कठोर कार्रवाई की मांग की। अभिभावकों का कहना है कि अगर जल्द ही इस दुष्चक्र को नहीं तोड़ा गया, तो वे सड़कों पर उतरने को मजबूर होंगे।
प्रशासन के सामने अब सवाल यह है कि क्या वह इस गठजोड़ को तोड़ने के लिए निर्णायक कदम उठाएगा, या फिर शिक्षा के नाम पर यह लूटतंत्र यूं ही चलता रहेगा? शहर की नजर अब प्रशासन के अगले कदम पर टिकी है।