जिसे भ्रष्टाचार रोकना था, वही बन बैठा घोटालेबाज: जबलपुर के स्थानीय निधि संपरीक्षा कार्यालय में करोड़ों का गबन उजागर




जबलपुर: "दीया तले अंधेरा"—यह कहावत मध्यप्रदेश के जबलपुर में पूरी तरह चरितार्थ हो गई, जहां भ्रष्टाचार पर लगाम लगाने के लिए जिम्मेदार विभाग ही घोटाले की दलदल में फंस गया। स्थानीय निधि संपरीक्षा कार्यालय में करोड़ों रुपये के गबन का मामला सामने आया है, जिसमें एक साधारण क्लर्क के नाम पर बड़े पैमाने पर वित्तीय अनियमितताएँ उजागर हुई हैं।

फर्जी बिलों से करोड़ों का हेरफेर
आरोप है कि कार्यालय में तैनात लिपिक संदीप शर्मा फर्जी बिल तैयार कर, अधिकारियों से हस्ताक्षर कराकर, उनकी ऑनलाइन प्रतियों में छेड़छाड़ करता था। फिर इन बिलों की बढ़ी हुई रकम अपने परिचितों के खातों में ट्रांसफर कर दी जाती थी। घोटाले की पोल तब खुली जब एक ही बिल की कागजी और डिजिटल प्रतियों में अलग-अलग राशि दर्ज पाई गई।

शुरुआती जांच में 55 लाख रुपये के गबन की पुष्टि हुई थी, लेकिन अब यह आंकड़ा 6 करोड़ रुपये से भी अधिक पहुंच चुका है। इस घोटाले में दो अधिकारियों को तत्काल प्रभाव से निलंबित कर दिया गया है, जबकि संयुक्त संचालक का तबादला कर दिया गया है।

प्रशासन ने कसा शिकंजा, आरोपी फरार
घोटाले के सामने आने के बाद प्रशासन ने सख्त कदम उठाए हैं। सहायक संचालक प्रिया विश्नोई और संपरीक्षक सीमा अमित तिवारी को निलंबित कर दिया गया है, जबकि संयुक्त संचालक मनोज बरहैया को भोपाल ट्रांसफर कर दिया गया है। उनकी जगह रीवा से अमित विजय पाठक को जबलपुर भेजा गया है।

संयुक्त संचालक अमित विजय पाठक ने कहा, "इस वित्तीय घोटाले की गहन जांच कराई जा रही है और दोषियों के खिलाफ सख्त कानूनी कार्रवाई होगी।"

हालांकि, इस खुलासे के बाद से ही आरोपी लिपिक संदीप शर्मा फरार हो गया है। अब प्रशासन इस बात की जांच कर रहा है कि उसने यह गबन अकेले किया या इसमें अन्य अधिकारी भी शामिल हैं। इस बीच, संदीप शर्मा के नाम से एक कथित सुसाइड लेटर वायरल हुआ है, जिसमें उसने कुछ वरिष्ठ अधिकारियों पर दबाव बनाने और उसे बलि का बकरा बनाने का आरोप लगाया है। हालांकि, प्रशासन ने इस पत्र की सत्यता की पुष्टि नहीं की है।

कलेक्टर का बड़ा बयान, घोटाले की जड़ें और गहरी?
जबलपुर कलेक्टर दीपक सक्सेना का कहना है कि यह महज 55 लाख रुपये का नहीं, बल्कि करोड़ों रुपये के गबन का मामला है। उन्होंने आशंका जताई है कि इस घोटाले में जबलपुर ही नहीं, भोपाल में बैठे बड़े अधिकारी भी शामिल हो सकते हैं। घोटाले की जांच के लिए एक विशेष कमेटी का गठन किया गया है, जो हर स्तर पर वित्तीय गड़बड़ियों की पड़ताल करेगी।

राजनीतिक रंग लेता घोटाला
इस घोटाले ने राजनीतिक हलकों में भी हलचल मचा दी है। जबलपुर पाटन से भाजपा विधायक और वरिष्ठ नेता अजय विश्नोई ने मुख्यमंत्री मोहन यादव को पत्र लिखकर इस मामले में उच्च स्तरीय जांच की मांग की है। इसी बीच, जबलपुर के कोषालय विभाग से जुड़े एक अन्य घोटाले की भी जांच शुरू कर दी गई है, जिसमें एक कर्मचारी ने अपने वरिष्ठ अधिकारियों की आईडी का दुरुपयोग कर करोड़ों रुपये का गबन कर लिया और फरार हो गया।

सरकारी वित्तीय प्रणाली पर उठे सवाल
यह पूरा मामला सरकारी वित्तीय प्रणाली की गंभीर खामियों को उजागर करता है। सवाल यह उठता है कि अगर भ्रष्टाचार रोकने के लिए जिम्मेदार विभाग ही गबन में लिप्त है, तो निगरानी कौन करेगा? क्या इस घोटाले में सिर्फ एक क्लर्क ही दोषी है, या फिर पूरा सिस्टम ही भ्रष्टाचार की चपेट में है? अब देखना यह होगा कि प्रशासन कितनी तत्परता से इस मामले की तह तक पहुंचता है और क्या सच में दोषियों को सजा मिलती है या फिर यह मामला भी अन्य घोटालों की तरह फाइलों में ही दफन होकर रह जाता है।


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