इंदौर, मध्य प्रदेश:
भारतीय संविधान ने महिलाओं के अधिकारों की रक्षा के लिए कई कानून बनाए हैं, लेकिन इन कानूनों के कथित दुरुपयोग के मामले भी लगातार सामने आ रहे हैं। ऐसा ही एक हृदयविदारक मामला इंदौर के बाणगंगा थाना क्षेत्र के न्यू गोविंद नगर से सामने आया है। यहां 32 वर्षीय नितिन पीडीआर ने पत्नी और ससुराल वालों की प्रताड़ना से तंग आकर आत्महत्या कर ली।
14 पन्नों का सुसाइड नोट
नितिन ने आत्महत्या से पहले 14 पन्नों का एक सुसाइड नोट लिखा, जिसमें उन्होंने अपनी पीड़ा व्यक्त करते हुए भारत सरकार से महिलाओं से संबंधित कानूनों में संशोधन की मांग की। सुसाइड नोट में नितिन ने अपनी मां से माफी मांगते हुए लिखा, "रोना मत, तेरा बेटा बनकर वापस तुम्हारा कर्ज चुकाने आऊंगा।" इसके साथ ही उन्होंने युवाओं को सलाह दी कि शादी से पहले एग्रीमेंट जरूर करें।
मामले की पृष्ठभूमि
परिवार के अनुसार, नितिन ने 2019 में प्रेम विवाह किया था। प्रारंभ में उनका वैवाहिक जीवन सामान्य था, लेकिन कुछ समय बाद पत्नी हर्षा का व्यवहार बदल गया। विवाद बढ़ने पर हर्षा राजस्थान चली गई और वहां से नितिन और उनके परिवार पर दहेज प्रताड़ना के केस दर्ज करवा दिए।
नितिन के बड़े भाई का आरोप है कि परिवार पर पुलिस और ससुराल पक्ष की ओर से अत्यधिक दबाव बनाया गया। राजस्थान के कुचामन सिटी में पुलिस अधिकारियों ने भी उनके साथ अभद्र व्यवहार किया। इस सबके चलते नितिन गहरे मानसिक तनाव में थे।
सुसाइड नोट में गंभीर आरोप
नितिन ने अपने सुसाइड नोट में पत्नी की प्रताड़नाओं का विस्तार से उल्लेख किया। उन्होंने लिखा कि पत्नी उन्हें न केवल मानसिक रूप से परेशान करती थी, बल्कि गर्भपात जैसी महत्वपूर्ण बातें उनसे छिपाती थी। जब उनका बेटा हुआ, तो वह उसे पूजा के बहाने राजस्थान ले गई और फिर नितिन से सभी संपर्क तोड़ दिए।
सवालों के घेरे में कानून और समाज
यह घटना दहेज कानूनों के दुरुपयोग के मामलों पर गंभीर सवाल खड़े करती है। मृतक के परिवार का कहना है कि सरकार "बेटी बचाओ" जैसे अभियानों पर जोर दे रही है, लेकिन बेटों की समस्याओं पर ध्यान नहीं दिया जा रहा।
पुलिस जांच और आगे का कदम
इंदौर पुलिस ने मामला दर्ज कर जांच शुरू कर दी है। हालांकि, इस बात पर अब भी सवाल बने हुए हैं कि महिलाओं से संबंधित कानूनों में सुधार की मांग पर कानूनविद और सरकार क्या कदम उठाएंगे।
यह घटना हमारे समाज और न्याय प्रणाली के लिए एक गंभीर चेतावनी है। यह जरूरी है कि कानूनों का दुरुपयोग रोकने के लिए प्रभावी कदम उठाए जाएं, ताकि न तो महिलाओं के अधिकार कमजोर हों और न ही निर्दोष पुरुषों की जिंदगियां बर्बाद हों।