स्कूल की जर्जर दीवार गिरने से 12 साल की बच्ची गंभीर रूप से घायल, प्रशासन बेखबर

 


घंसौर, जिला सिवनी:

जिले के आदिवासी बाहुल्य क्षेत्र घंसौर के खुदरगांव में सोमवार को शासकीय प्राथमिक शाला की जर्जर दीवार गिरने से एक 12 साल की छात्रा गंभीर रूप से घायल हो गई। इस हादसे ने स्कूल प्रबंधन और प्रशासन की लापरवाही को उजागर कर दिया है। घायल छात्रा साक्षी, पिता मनोज भगदिया, को तुरंत घंसौर अस्पताल ले जाया गया, जहां प्राथमिक उपचार के बाद उसे जबलपुर मेडिकल कॉलेज रेफर किया गया।

हादसे का पूरा विवरण:

जन शिक्षा केन्द्र बरेला के अंतर्गत आने वाले खुदरगांव के सरकारी स्कूल की दीवार वर्षों से जर्जर हालत में थी। सोमवार को स्कूल के बच्चों का समूह दीवार के पास खेल रहा था। अचानक दीवार का एक हिस्सा भरभराकर गिर गया, जिसकी चपेट में आकर साक्षी गंभीर रूप से घायल हो गई। बच्चों की चीख-पुकार सुनकर आसपास के लोग तुरंत वहां पहुंचे और मलबे से साक्षी को बाहर निकाला।

एंबुलेंस सेवा में देरी:

घायल छात्रा को अस्पताल ले जाने में भी देरी हुई। आरोप है कि 108 एंबुलेंस को घटना की सूचना दी गई, लेकिन वह काफी देर बाद पहुंची। इस बीच, छात्रा बेसुध हालत में स्कूल परिसर में पड़ी रही।

पिता का आरोप:

साक्षी के पिता मनोज भगदिया ने बताया, "मेरी बेटी रोजाना की तरह स्कूल गई थी। वहां दीवार गिरने से वह गंभीर रूप से घायल हो गई। हादसे के वक्त स्कूल में अन्य छात्र और शिक्षक भी मौजूद थे, लेकिन किसी और को चोट नहीं आई।"

जिम्मेदार अधिकारियों की अनभिज्ञता:

हादसे के बाद स्थिति और गंभीर हो गई जब यह पता चला कि शिक्षा विभाग के जिला परियोजना समन्वयक (डीपीसी) और ब्लॉक रिसोर्स कोऑर्डिनेटर (बीआरसीसी) को रात 9 बजे तक घटना की जानकारी ही नहीं थी। मीडिया के सवालों पर दोनों अधिकारियों ने पहले अनभिज्ञता जाहिर की। बाद में डीपीसी ने कहा, "यह घटना सही है। हमने बीआरसीसी और बीएसी को निर्देश दिया है कि छात्रा के स्वास्थ्य की पूरी जानकारी देते रहें।"

ग्रामीणों में आक्रोश:

गांव के निवासियों का कहना है कि स्कूल की दीवार काफी समय से खराब हालत में थी, लेकिन प्रशासन ने इसे ठीक कराने की कोई पहल नहीं की। अब इस हादसे के बाद गांव में रोष है और लोग जिम्मेदार अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई की मांग कर रहे हैं।

प्रशासन की लापरवाही का प्रमाण:

यह हादसा प्रशासन और शिक्षा विभाग की घोर लापरवाही का प्रमाण है। एक ओर जहां सरकार स्कूलों में बच्चों की सुरक्षा और शिक्षा को प्राथमिकता देने की बात करती है, वहीं दूसरी ओर इस तरह की घटनाएं इन दावों को झूठा साबित करती हैं।

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