मणिपुर हाईकोर्ट में चीफ जस्टिस न्यायमूर्ति सिद्धार्थ मृदुल की अध्यक्षता वाली खंडपीठ ने अदालत के पुराने आदेश में संशोधन किया है। आदेश में संशोधन इसलिए भी चर्चा में है, क्योंकि मैतेई समुदाय से जुड़े हाईकोर्ट के आदेश के बाद मई 2023 के बाद मणिपुर के कई हिस्सों में जमकर हिंसा हुई थी। मणिपुर हाईकोर्ट में चीफ जस्टिस न्यायमूर्ति सिद्धार्थ मृदुल की अध्यक्षता वाली खंडपीठ ने अदालत के पुराने आदेश में संशोधन किया है। आदेश में संशोधन इसलिए भी चर्चा में है, क्योंकि मैतेई समुदाय से जुड़े हाईकोर्ट के आदेश के बाद मई 2023 के बाद मणिपुर के कई हिस्सों में जमकर हिंसा हुई थी।
मणिपुर हाईकोर्ट ने मैतेई समुदाय को अनुसूचित जनजाति सूची में शामिल करने पर विचार करने को लेकर राज्य सरकार को दिए निर्देश से जुड़े आदेश में संशोधन कर दिया है। मणिपुर हाईकोर्ट की जिस पीठ ने फैसला सुनाया है, उसमें चीफ जस्टिस के अलावा न्यायमूर्ति गोलमेई गाइफुलशिल्लू भी शामिल थे। हाईकोर्ट के पुराने आदेश को संशोधित करते हुए चीफ जस्टिस सिद्धार्थ मृदुल और जस्टिस गाइफुलशिलु ने साफ किया कि 27 मार्च, 2023 को पारित आदेश का पैराग्राफ 17 (iii) हटाया जा रहा है।
बता दें कि लगभग 11 महीने पहले पारित इस आदेश में हाईकोर्ट की एकल पीठ ने सरकार को मैतेई समुदाय को अनुसूचित जनजातियों की सूची में शामिल करने पर विचार करने का निर्देश दिया था। इस आदेश के बाद उपजे विवाद के कारण मणिपुर के कई हिस्सों में मैतेई और कुकी आदिवासी समुदाय के बीच जनजातीय संघर्ष हुआ।
पुराना आदेश सुप्रीम कोर्ट में निर्धारित सिद्धांतों के खिलाफ
गौरतलब है कि मार्च, 2023 में मणिपुर हाईकोर्ट के तत्कालीन कार्यवाहक चीफ जस्टिस एमवी मुरलीधरन की पीठ ने सरकार को निर्देश दिया था। अप्रैल में आदेश की प्रति सार्वजनिक होने के बाद मणिपुर के कई हिस्सों में जमकर हिंसा भड़की थी। हाईकोर्ट के फैसले को संशोधित करने का आदेश देते हुए चीफ जस्टिस सिद्धार्थ मृदुल की पीठ ने बुधवार, 21 फरवरी को पारित आदेश में कहा, 'अदालत इस बात से संतुष्ट है कि एकल न्यायाधीश की पीठ में 27 मार्च, 2023 को पारित आदेश के पैराग्राफ 17 (iii) में दिए गिए निर्देशों की समीक्षा जरूरी है। हाईकोर्ट की खंडपीठ ने साफ किया कि एकल पीठ के निर्देश सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ के आदेश के खिलाफ है।'
सरकार ने बनाया है संवैधानिक प्रोटोकॉल
चीफ जस्टिस की अध्यक्षता वाली खंडपीठ में संशोधन का निर्देश देते हुए न्यायमूर्ति गाइफुलशिलु ने कहा कि अनुसूचित जनजाति सूची में संशोधन के लिए भारत सरकार ने प्रक्रिया निर्धारित की है। उन्होंने लगभग 11 महीने पहले पारित आदेश के पैरा 17 (iii) में निहित हाईकोर्ट के निर्देश को हटाने पर जोर दिया। अदालत ने साल 2013-14 में जारी जनजातीय मामलों के मंत्रालय की रिपोर्ट में शामिल विस्तृत संवैधानिक प्रोटोकॉल का उल्लेख भी किया।
अनुसूचित जनजाति वर्गीकरण के संबंध में न्यायिक हस्तक्षेप
उच्च न्यायालय की खंडपीठ अपने 19 पेज के फैसले में कहा, एकल न्यायाधीश के फैसले में पैरा 17(iii) सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ में की गई टिप्पणी के खिलाफ है। अदालत ने अनुसूचित जनजाति वर्गीकरण के संबंध में न्यायिक हस्तक्षेप पर विधायी सीमाओं को भी रेखांकित किया। बता दें कि नवंबर 2000 में सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने साफ किया था कि अधिकार क्षेत्र का विस्तार नहीं किया जा सकता।