रेवांचल टाईम्स - मंडला आदिवासी बाहुल्य जिला मुख्यालय मंडला में संचालित जिला अस्पताल में अनेक तरह की सुविधाओं की कमी बनी हुई है कभी कोई मशीन खराब होती है तो कभी मशीनों को ऑपरेटिंग करने वाला नहीं होता है, तो कभी कई तरह की सुविधाओं को अभाव मरीजों के लिए परेषानी का सबब बन गया है। सभी तरह के इंतजाम जिला अस्पताल मंडला में नहीं किये जा रहे हैं। मरीज़ो को अनेक तरह के सुविधाओं का टोटा यहां बना हुआ है। जिसे दूर करने के लिए शासन प्रषासन द्वारा ध्यान नहीं दिया जा रहा है। जबकि सरकार स्वास्थ्य सुविधाओं के लिए पानी की तरह पैसा बहा रही है लेकिन मंडला जिले में सरकारी स्वास्थ्य व्यवस्था में मनमानी और लापरवाही व धांधली की भेंट चढ़ गई है। चिकित्सालय में विषेषज्ञ डाॅक्टरों की कमी बनी हुई है। बताया जा रहा है कि यहां पर 39 विषेषज्ञ डाॅक्टरों के पद स्वीकृत हैं जिसमें से सिर्फ 16 विषेषज्ञ डाॅक्टर ही अपनी सेवाएं दे पा रहे हैं। और मरीज़ो को थोड़ा बहुत ईलाज करके अधिकतर मरीज़ो मेडिकल जबलपुर रिफर कर दिया जाता है, और बताया तो यह भी जा रहा है कि यदि कान की कोई तकलीफ होती है तो जबलपुर में ईलाज हो पा रहा है। स्ट्रेचर यहां पर बीमार के परिजन खुद ही धकेल रहे हैं और पैथाॅलाॅजी में लंबी लाईन लग रही है। शासन प्रषासन के आला अधिकारी लगातार जिला अस्पताल का निरीक्षण कर रहे हैं इसके बाद भी ओपीडी में चिकित्सकों की सेवाएं नहीं सुधर रही है। इसके साथ भी मरीजों के ईलाज के सभी तरह के इंतजाम ठीक नहीं हो पा रहे हैं। जब जिला अस्पताल की जब ऐसी स्थिति है तो फिर बाकी सरकारी अस्पतालों की मंडला जिले में क्या स्थिति होगी यह जांच का विषय बन गया है। मंडला जिले के सभी सरकारी अस्पताल, सभी स्वास्थ्य केन्द्र व सभी आयुर्वेदिक औषधालय जांच का केन्द्र बन गए हैं। सभी की जांच कराकर स्वास्थ्य सेवाओं का सही क्रियान्वयन कराकर जरूरतमंदों को लाभान्वित कराया जावे।
वही जिला चिकित्सालय में पदस्थ डॉक्टर सरकारी अस्पताल के साथ साथ अपनी निजी किलीनिक भी संचालित रहे है जिस कारण मरीज़ को समस्याओं का सामना करना पड़ता हैं, अगर बीमारी का सही ईलाज मरीज चाहते है तो सरकारी स्वास्थ्य सेवा में नही बल्कि निजी किलीनिक में जाकर इलाज करने को मजबूर हैं। वही दूसरी ओर कोरोना जैसी महामारी बीमारी भी धीरे धीरे पुनः अपनी रफ़्तार पकड़ रही हैं।