शेन वॉर्न, क्रिकेट की दुनिया के ऐसे जीनियस रहे जिनके बारे में दावा किया जा सकता है, उनसे जुड़ी हर कहानी को क्रिकेट प्रेमी जानते होंगे या फिर जानने का दावा करते होंगे.
वॉर्न जब तक क्रिकेट खेलते रहे मैदान में सुर्खियां बनाते रहे, क्रिकेट के मैदान के बाहर भी टेबलायड उनसे जुड़ी ख़बरों से भरे रहे. बावजूद इसके वॉर्न लोगों को ताउम्र चौंकाते रहे.
जब तक क्रिकेट के मैदान में खेले, अपनी घूमती गेंदों से बल्लेबाज़ों को चौंकाया, खेल के मैदान के बाहर अपनी फैन फॉलोइंग से दुनिया के दूसरे सेलिब्रेटीज़ को चौंकाते रहे, कमेंट्री करते हुए खेल की बारीकियों को पकड़ने में साथी कमेंटेटरों को चौंकाते रहे. खेल के मैदान के बाहर निजी जीवन में कई बार अपने पार्टनर्स को भी चौंकाया और आख़िरी में पूरी दुनिया को चौंकाते हुए उस यात्रा पर निकल लिए, जहां से कोई लौट कर नहीं आता.
क्रिकेट के खेल को जानने वाले जानते होंगे कि लेग स्पिन करना इतना आसान नहीं होता और उस स्पिन को शेन वॉर्न ने इस अंदाज़ में साधा कि उनके आसपास कहीं कोई और नहीं दिखता है. वॉर्न ने लेग स्पिन को कूल और स्टाइलिश अंदाज़ में बदल दिया.
वॉर्न की गेंदबाज़ी का रनअप रहा हो, गेंद डालने का उनका अंदाज़ हो या फिर विकेट के लिए अपील करने की शैली रही हो या फिर जश्न मनाने का अंदाज़, इन सबके दुनिया भर में दीवाने मौजूद थे.
लेग स्पिन की इस मुश्किल के बारे में शेन वॉर्न ने अपनी आत्मकथा 'नो स्पिन' में भी लिखा है, "स्पिन गेंदबाज़ी बेहद मुश्किल है, लेकिन फन भी है. सबसे बड़ी ख़बर यही है कि लेग स्पिन गेंदबाज़ी फिर से फैशन में आ गयी है, ख़ासकर छोटे फॉरमेट में भी. मुझे गर्व है कि मैंने अपनी भूमिका निभाई. संक्षेप में कहूं तो लेग स्पिन आधे-अधूरे मन से संभव नहीं है, आपको लेग स्पिन से प्यार करना होता है. मैं लकी रहा कि मैं ये लगातार और मारक क्षमता के साथ करता रहा."
700 विकेट का मुकाम
वॉर्न की गेंदबाज़ी के तमाम आंकड़े भी उनकी काबिलियत को ठीक-ठीक नहीं माप सकते. लेकिन उनके आंकड़ों को भी देखना चाहिए.
शेन वॉर्न टेस्ट क्रिकेट में 700 विकेट का मुकाम हासिल करने वाले पहले गेंदबाज़ बने. टेस्ट क्रिकेट में 145 मैचों में वॉर्न ने कुल 708 विकेट चटकाए. इसमें 194 वनडे मैचों के 293 विकेट अगर आप जोड़ देंगे तो यह आंकड़ा 1001 विकेटों तक पहुंचता है.
टेस्ट क्रिकेट में सबसे ज़्याद विकेटों के उनके रिकॉर्ड को एक और स्पिन लीजेंड मुथैया मुरलीधरन ने तोड़ दिया था, मुरलीधरन टेस्ट क्रिकेट में 800 विकेट हासिल करने वाले इकलौते गेंदबाज़ हैं.
शेन वॉर्न खुद समय-समय पर मुथैया मुरलीधरन की गेंदबाज़ी की तारीफ़ करते रहे हैं. मुरलीधरन की मैच में जीत दिलाने की क्षमता के कायल दुनिया भर के क्रिकेटर रहे हैं. लेकिन, लोकप्रियता के पैमाने पर वॉर्न उनसे हमेशा बहुत आगे रहे.
लेकिन, क्या केवल इसमें पर्सनालिटी भर का सवाल था. इस सवाल पर सोच विचार करने से पहले इन दोनों गेंदबाज़ों के करियर से जुड़े एक आंकड़े पर भी विचार करना चाहिए.
मुरलीधरन के 800 विकेटों में जिंबाब्वे और बांग्लादेश टीम के बल्लेबाज़ों के 176 विकेट शामिल रहे हैं. वहीं, दूसरी ओर वॉर्न ने इन दोनों देशों के बल्लेबाज़ों के 17 विकेट शामिल रहे हैं.
ये वो पहलू है जो यह दर्शाता है कि वॉर्न की कामयाबी का लगभग पूरा ही हिस्सा अपेक्षाकृत मज़बूत बल्लेबाज़ों के सामने आया है. इससे मुरलीधरन की काबिलियत कम नहीं हो जाती है, लेकिन वॉर्न की काबिलियत का सही-सही अंदाज़ा लगाया जा सकता है.
बडे़ मैचों में किया फेरबदल
वॉर्न की पहचान ऐसे गेंदबाज़ की रही जो बड़े मैचों में अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करना बखूबी जानता था. 1999 के वर्ल्ड कप के सेमीफ़ाइनल मुकाबले को ही देख लीजिए जिसमें जब दक्षिण अफ्ऱीकी टीम 214 रनों का पीछा करते हुए मज़बूत स्थिति की ओर बढ़ती दिख रही थी तब वॉर्न ने एक के बाद एक तीन विकेट चटका कर टीम को चैंपियन बनाने वाले मुक़ाबले में पहुंचा दिया.
इंग्लैंड और ऑस्ट्रेलिया के बीच मुक़ाबले में ऐशेज की टक्कर को सबसे अहम माना जाता है, लगातार 14 सालों तक वॉर्न इंग्लैंड के बल्लेबाज़ों की नींद उड़ाते रहे. इंग्लैंड के ख़िलाफ़ 195 टेस्ट विकेट, किसी भी गेंदबाज़ का एक देश के ख़िलाफ़ सबसे ज़्यादा विकेटों का रिकॉर्ड है. इसके अलावा उन्होंने साउथ अफ्ऱीका के ख़िलाफ़ भी 130 विकेट चटकाए थे.
वॉर्न के मैज़िकल टच की दो बड़ी मिसाल उनके करियर के शुरुआती सालों में ही दुनिया को हो गई थी. हालांकि, टेस्ट मैचों में उनका डेब्यू बहुत औसत रहा.
वॉर्न ने अपनी पुस्तक 'नो स्पिन' में इस डेब्यू टेस्ट और उससे ठीक पहले की स्थिति का दिलचस्प वर्णन किया है. वॉर्न के मुताबिक वे ऑस्ट्रेलियाई टीम के साथ एक दो दौर पर जा चुके थे लेकिन टेस्ट में डेब्यू का इंतज़ार बना हुआ था. कभी फुटबॉल को अपना करियर बनाने की चाहत रखने वाले वॉर्न इंतज़ार करते-करते ऊब चुके थे.
1990-91 में भारतीय टीम ऑस्ट्रेलियाई दौरे पर पहुंची थी. बॉक्सिंग डे टेस्ट को वॉर्न अपने साथी डीन वॉग के साथ देख रहे थे, डीन वॉग- स्टीव वॉग और मार्क वॉग के छोटे भाई थे, जो इंटरनेशनल क्रिकेट में नहीं खेल सके.
मैच देखते हुए वॉर्न ने एक चिड़िया के मांस के तीन टुकड़े दाएं हाथ में रखे हुए थे और बाएं हाथ में बीयर की बोतल. तभी वहां से तत्कालीन ऑस्ट्रेलियाई टीम मैनेजर इयान मैकडोनाल्ड गुजरे. मैकडोनाल्ड ने वॉर्न को देखकर कहा, "गो इज़ी मेट, यू माइट प्लेइंग इन सिडनी." अगली सुबह वॉर्न को पता चल गया कि दो जनवरी, 1992 से सिडनी में शुरू हो रहे टेस्ट में वे डेब्यू करने वाले हैं.
पहला टेस्ट बुरे सपने जैसा
लेकिन ये टेस्ट शेन वॉर्न के लिए किसी बुरे सपने जैसा साबित हुआ. रवि शास्त्री ने उनकी गेंदों को स्टेडियम के चारों तरफ़ बाउंड्री के पार भेजा. शास्त्री ने उस मुक़ाबले में दोहरा शतक ठोका था जबकि 18 साल के सचिन तेंदुलकर ने नाबाद 148 रनों की पारी खेली थी. इन दोनों के सामने शेन वॉर्न बेबस नज़र आए.
शेन वॉर्न ने 'नो स्पिन' में लिखा है, "शास्त्री को 66 रनों पर मैंने जीवनदान दे दिया था, अपनी गेंद पर कैच नहीं लपक पाया था और ये बहुत महंगा साबित हुआ. तेंदुलकर 12 साल (18 की जगह) के थे और आठ साल के लग रहे थे और मेरी गेंदों की धुनाई कर रहे थे."
शेन वॉर्न ने 150 रन ख़र्च करने के बाद रवि शास्त्री को 206 रनों पर आउट करने में कामयाबी हासिल की. हालांकि, टेस्ट बचाने के लिए शेन वॉर्न मैच ख़त्म होने तक एलन बॉर्डर के साथ क्रीज़ पर जमे हुए थे, ये उनके पहले टेस्ट का हासिल कहा जा सकता है.
लेकिन, रवि शास्त्री ने युवा वॉर्न में जो देखा था, उसका जिक्र उन्होंने हाल ही मे प्रकाशित अपनी पुस्तक 'स्टार गेज़िंग' में लिखा है.
शेन वॉर्न को लेकर लिखे अपने अनुभव में रवि शास्त्री ने कहा, "जब मैं 206 रन पर आउट हुआ तब भी मेरा विकेट झटकने के बाद वॉर्न ने मुझे पवेलियन की ओर दिखाते हुए विकेट लेने का जश्न मनाया था. पहले टेस्ट से ही वह बल्लेबाज़ के साथ जुबानी जंग करने वाले गेंदबाज़ थे. मैंने उम्र में छोटे लेकिन इंटरनेशनल क्रिकेट में उनके सीनियर सचिन तेंदुलकर के साथ उन्हें ऐसा करते पहले मैच में ही देखा था. मैच के बाद जब मैं मैन ऑफ़ द मैच अवार्ड लेने गया तो भी मैंने वॉर्न को देखा कि उनके कंधे झुके हुए नहीं थे, वे पॉज़िटिव एट्टीट्यूड से भरे क्रिकेटर दिखाई पड़े थे."
शताब्दी की गेंद
और महज एक साल बाद ओल्ड ट्रैफर्ड में माइक गैटिंग के सामने शेन वॉर्न ने वह गेंद फेंकी जिसे शताब्दी की गेंद कहा जाता है.
माइक गैटिंग के सामने शेन वॉर्न ने एक फ्लाइटेड गेंद डाली थी, जो शुरू में लगा कि सीधे जा रही है लेकिन गेंद ने हवा में ही दिशा बदली और गैटिंग के लेग स्टंप के पास टप्पा खाई, जिसे खेलने में गैटिंग चूक गए और गेंद वहां से टर्न होते हुए उनका ऑफ़ स्टंप ले उड़ी. अनुमान के तौर पर गेंद 45 डिग्री के कोण पर मुड़ गई. जब भी इस गेंद की बात हुई वॉर्न ने हमेशा यही कहा कि इसमें उनका कोई योगदान नहीं था, ये फ्लूक था.
लेकिन दुनिया को मालूम था कि चमत्कार हो चुका है, गैटिंग को विश्वास नहीं हो रहा था. उनके सामने खड़े ग्राहम गूच ने बाद में गैटिंग की प्रतिक्रिया को बताते हुए कहा था कि गैटिंग को ऐसे लगा कि किसी ने उनके सामने से खाने की प्लेट खींच ली हो.
लेकिन, इस गेंद के करिश्माई गेंद होने की बात सबसे पहले इयन हिली ने बताई थी क्योंकि इसी टेस्ट से सबसे पहले टेस्ट क्रिकेट के मैदान में रिप्ले स्क्रीन लगाने का दौर शुरू हुआ था. इसका रिप्ले पूरी ऑस्ट्रेलियाई टीम ने मैदान में खड़े होकर देखा और हिली ने वॉर्न से कहा कि यह अविश्वसनीय गेंद है.
बाद में ड्रेसिंग रूम में इयन हिली ने कहा कि बीबीसी इस गेंद के रिप्ले को दस बार दिखा चुका है, हर एंगल से दिखा रहा है. बीबीसी के कमेंट्री पैनल में रहे रिची बेनो ने भी कहा था कि गैंटिंग को अंदाज़ा नहीं हो रहा है आख़िर हुआ क्या.
वॉर्न ने इसके बाद कहें तो पीछे मुड़कर नहीं देखा और महज आठ-नौ साल के करियर के बाद वे उस मुकाम तक पहुंच गए, जहां पहुंचना बिल्कुल अकल्पनीय लगता है.
शताब्दी के क्रिकेटरों में चौथे स्थान पर
विज़डन ने 2000 में शताब्दी के क्रिकेटरों के लिए 100 पूर्व खिलाड़ियों और विशषेज्ञों की राय ली थी. इसमें शेन वॉर्न चौथे स्थान पर रहे थे. पहले स्थान पर 100 मतों के साथ डॉन ब्रैडमैन रहे. इसके बाद 90 एक्सपर्ट ने गैरी सोर्बस को वोट दिया था. जैक हाब्स 30 मतों के साथ तीसरे स्थान पर रहे.
जबकि शेन वॉर्न 27 मत के साथ चौथे और विवियन रिचर्ड्स 25 मत के साथ पांचवें स्थान पर रहे थे. इस सूची में सचिन तेंदुलकर कहीं लंबे करियर के बावजूद उस समय में छह मत ही पा सके थे, वे 17वें पायदान पर थे.
ख़ास बात ये भी थी कि उन पांच क्रिकेटरों में जगह पाने वाले वॉर्न इकलौते गेंदबाज़ रहे. दुनिया के मशहूर गेंदबाज़ वसीम अकरम को तीन, कर्टली एंब्रोस और एन डोनाल्ड को एक-एक मत मिला था. रिचर्ड हैडली और इमरान ख़ान 13-13 मतों के साथ दसवें स्थान पर थे.
शेन वॉर्न लगभग 15 साल तक ऑस्ट्रेलियाई क्रिकेट के आधार स्तंभ बने रहे. इस दौरान ग्लेन मैक्ग्रा के साथ उनकी जोड़ी ने दुनिया भर के बल्लेबाज़ों को छकाना जारी रखा. दोनों ने मिलकर टेस्ट क्रिकेट में 1281 विकेट झटके.
इस दौरान ऑस्ट्रेलिया का वर्ल्ड क्रिकेट में दबदबा भी देखने को मिला. वैसे वॉर्न के पूरे करियर में एक मलाल ये ज़रूर हो सकता है कि भारतीय बल्लेबाज़ों के सामने उनका जलवा कभी नहीं चल पाया. पहले टेस्ट में सचिन तेंदुलकर और शास्त्री ने जो उनकी धुलाई की, वो आगे भी जारी रही. बावजूद इसके शेन वॉर्न भारत में खासे लोकप्रिय रहे.
वॉर्न जब तक क्रिकेट खेलते रहे मैदान में सुर्खियां बनाते रहे, क्रिकेट के मैदान के बाहर भी टेबलायड उनसे जुड़ी ख़बरों से भरे रहे. बावजूद इसके वॉर्न लोगों को ताउम्र चौंकाते रहे.
जब तक क्रिकेट के मैदान में खेले, अपनी घूमती गेंदों से बल्लेबाज़ों को चौंकाया, खेल के मैदान के बाहर अपनी फैन फॉलोइंग से दुनिया के दूसरे सेलिब्रेटीज़ को चौंकाते रहे, कमेंट्री करते हुए खेल की बारीकियों को पकड़ने में साथी कमेंटेटरों को चौंकाते रहे. खेल के मैदान के बाहर निजी जीवन में कई बार अपने पार्टनर्स को भी चौंकाया और आख़िरी में पूरी दुनिया को चौंकाते हुए उस यात्रा पर निकल लिए, जहां से कोई लौट कर नहीं आता.
क्रिकेट के खेल को जानने वाले जानते होंगे कि लेग स्पिन करना इतना आसान नहीं होता और उस स्पिन को शेन वॉर्न ने इस अंदाज़ में साधा कि उनके आसपास कहीं कोई और नहीं दिखता है. वॉर्न ने लेग स्पिन को कूल और स्टाइलिश अंदाज़ में बदल दिया.
वॉर्न की गेंदबाज़ी का रनअप रहा हो, गेंद डालने का उनका अंदाज़ हो या फिर विकेट के लिए अपील करने की शैली रही हो या फिर जश्न मनाने का अंदाज़, इन सबके दुनिया भर में दीवाने मौजूद थे.
लेग स्पिन की इस मुश्किल के बारे में शेन वॉर्न ने अपनी आत्मकथा 'नो स्पिन' में भी लिखा है, "स्पिन गेंदबाज़ी बेहद मुश्किल है, लेकिन फन भी है. सबसे बड़ी ख़बर यही है कि लेग स्पिन गेंदबाज़ी फिर से फैशन में आ गयी है, ख़ासकर छोटे फॉरमेट में भी. मुझे गर्व है कि मैंने अपनी भूमिका निभाई. संक्षेप में कहूं तो लेग स्पिन आधे-अधूरे मन से संभव नहीं है, आपको लेग स्पिन से प्यार करना होता है. मैं लकी रहा कि मैं ये लगातार और मारक क्षमता के साथ करता रहा."
700 विकेट का मुकाम
वॉर्न की गेंदबाज़ी के तमाम आंकड़े भी उनकी काबिलियत को ठीक-ठीक नहीं माप सकते. लेकिन उनके आंकड़ों को भी देखना चाहिए.
शेन वॉर्न टेस्ट क्रिकेट में 700 विकेट का मुकाम हासिल करने वाले पहले गेंदबाज़ बने. टेस्ट क्रिकेट में 145 मैचों में वॉर्न ने कुल 708 विकेट चटकाए. इसमें 194 वनडे मैचों के 293 विकेट अगर आप जोड़ देंगे तो यह आंकड़ा 1001 विकेटों तक पहुंचता है.
टेस्ट क्रिकेट में सबसे ज़्याद विकेटों के उनके रिकॉर्ड को एक और स्पिन लीजेंड मुथैया मुरलीधरन ने तोड़ दिया था, मुरलीधरन टेस्ट क्रिकेट में 800 विकेट हासिल करने वाले इकलौते गेंदबाज़ हैं.
शेन वॉर्न खुद समय-समय पर मुथैया मुरलीधरन की गेंदबाज़ी की तारीफ़ करते रहे हैं. मुरलीधरन की मैच में जीत दिलाने की क्षमता के कायल दुनिया भर के क्रिकेटर रहे हैं. लेकिन, लोकप्रियता के पैमाने पर वॉर्न उनसे हमेशा बहुत आगे रहे.
लेकिन, क्या केवल इसमें पर्सनालिटी भर का सवाल था. इस सवाल पर सोच विचार करने से पहले इन दोनों गेंदबाज़ों के करियर से जुड़े एक आंकड़े पर भी विचार करना चाहिए.
मुरलीधरन के 800 विकेटों में जिंबाब्वे और बांग्लादेश टीम के बल्लेबाज़ों के 176 विकेट शामिल रहे हैं. वहीं, दूसरी ओर वॉर्न ने इन दोनों देशों के बल्लेबाज़ों के 17 विकेट शामिल रहे हैं.
ये वो पहलू है जो यह दर्शाता है कि वॉर्न की कामयाबी का लगभग पूरा ही हिस्सा अपेक्षाकृत मज़बूत बल्लेबाज़ों के सामने आया है. इससे मुरलीधरन की काबिलियत कम नहीं हो जाती है, लेकिन वॉर्न की काबिलियत का सही-सही अंदाज़ा लगाया जा सकता है.
बडे़ मैचों में किया फेरबदल
वॉर्न की पहचान ऐसे गेंदबाज़ की रही जो बड़े मैचों में अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करना बखूबी जानता था. 1999 के वर्ल्ड कप के सेमीफ़ाइनल मुकाबले को ही देख लीजिए जिसमें जब दक्षिण अफ्ऱीकी टीम 214 रनों का पीछा करते हुए मज़बूत स्थिति की ओर बढ़ती दिख रही थी तब वॉर्न ने एक के बाद एक तीन विकेट चटका कर टीम को चैंपियन बनाने वाले मुक़ाबले में पहुंचा दिया.
इंग्लैंड और ऑस्ट्रेलिया के बीच मुक़ाबले में ऐशेज की टक्कर को सबसे अहम माना जाता है, लगातार 14 सालों तक वॉर्न इंग्लैंड के बल्लेबाज़ों की नींद उड़ाते रहे. इंग्लैंड के ख़िलाफ़ 195 टेस्ट विकेट, किसी भी गेंदबाज़ का एक देश के ख़िलाफ़ सबसे ज़्यादा विकेटों का रिकॉर्ड है. इसके अलावा उन्होंने साउथ अफ्ऱीका के ख़िलाफ़ भी 130 विकेट चटकाए थे.
वॉर्न के मैज़िकल टच की दो बड़ी मिसाल उनके करियर के शुरुआती सालों में ही दुनिया को हो गई थी. हालांकि, टेस्ट मैचों में उनका डेब्यू बहुत औसत रहा.
वॉर्न ने अपनी पुस्तक 'नो स्पिन' में इस डेब्यू टेस्ट और उससे ठीक पहले की स्थिति का दिलचस्प वर्णन किया है. वॉर्न के मुताबिक वे ऑस्ट्रेलियाई टीम के साथ एक दो दौर पर जा चुके थे लेकिन टेस्ट में डेब्यू का इंतज़ार बना हुआ था. कभी फुटबॉल को अपना करियर बनाने की चाहत रखने वाले वॉर्न इंतज़ार करते-करते ऊब चुके थे.
1990-91 में भारतीय टीम ऑस्ट्रेलियाई दौरे पर पहुंची थी. बॉक्सिंग डे टेस्ट को वॉर्न अपने साथी डीन वॉग के साथ देख रहे थे, डीन वॉग- स्टीव वॉग और मार्क वॉग के छोटे भाई थे, जो इंटरनेशनल क्रिकेट में नहीं खेल सके.
मैच देखते हुए वॉर्न ने एक चिड़िया के मांस के तीन टुकड़े दाएं हाथ में रखे हुए थे और बाएं हाथ में बीयर की बोतल. तभी वहां से तत्कालीन ऑस्ट्रेलियाई टीम मैनेजर इयान मैकडोनाल्ड गुजरे. मैकडोनाल्ड ने वॉर्न को देखकर कहा, "गो इज़ी मेट, यू माइट प्लेइंग इन सिडनी." अगली सुबह वॉर्न को पता चल गया कि दो जनवरी, 1992 से सिडनी में शुरू हो रहे टेस्ट में वे डेब्यू करने वाले हैं.
पहला टेस्ट बुरे सपने जैसा
लेकिन ये टेस्ट शेन वॉर्न के लिए किसी बुरे सपने जैसा साबित हुआ. रवि शास्त्री ने उनकी गेंदों को स्टेडियम के चारों तरफ़ बाउंड्री के पार भेजा. शास्त्री ने उस मुक़ाबले में दोहरा शतक ठोका था जबकि 18 साल के सचिन तेंदुलकर ने नाबाद 148 रनों की पारी खेली थी. इन दोनों के सामने शेन वॉर्न बेबस नज़र आए.
शेन वॉर्न ने 'नो स्पिन' में लिखा है, "शास्त्री को 66 रनों पर मैंने जीवनदान दे दिया था, अपनी गेंद पर कैच नहीं लपक पाया था और ये बहुत महंगा साबित हुआ. तेंदुलकर 12 साल (18 की जगह) के थे और आठ साल के लग रहे थे और मेरी गेंदों की धुनाई कर रहे थे."
शेन वॉर्न ने 150 रन ख़र्च करने के बाद रवि शास्त्री को 206 रनों पर आउट करने में कामयाबी हासिल की. हालांकि, टेस्ट बचाने के लिए शेन वॉर्न मैच ख़त्म होने तक एलन बॉर्डर के साथ क्रीज़ पर जमे हुए थे, ये उनके पहले टेस्ट का हासिल कहा जा सकता है.
लेकिन, रवि शास्त्री ने युवा वॉर्न में जो देखा था, उसका जिक्र उन्होंने हाल ही मे प्रकाशित अपनी पुस्तक 'स्टार गेज़िंग' में लिखा है.
शेन वॉर्न को लेकर लिखे अपने अनुभव में रवि शास्त्री ने कहा, "जब मैं 206 रन पर आउट हुआ तब भी मेरा विकेट झटकने के बाद वॉर्न ने मुझे पवेलियन की ओर दिखाते हुए विकेट लेने का जश्न मनाया था. पहले टेस्ट से ही वह बल्लेबाज़ के साथ जुबानी जंग करने वाले गेंदबाज़ थे. मैंने उम्र में छोटे लेकिन इंटरनेशनल क्रिकेट में उनके सीनियर सचिन तेंदुलकर के साथ उन्हें ऐसा करते पहले मैच में ही देखा था. मैच के बाद जब मैं मैन ऑफ़ द मैच अवार्ड लेने गया तो भी मैंने वॉर्न को देखा कि उनके कंधे झुके हुए नहीं थे, वे पॉज़िटिव एट्टीट्यूड से भरे क्रिकेटर दिखाई पड़े थे."
शताब्दी की गेंद
और महज एक साल बाद ओल्ड ट्रैफर्ड में माइक गैटिंग के सामने शेन वॉर्न ने वह गेंद फेंकी जिसे शताब्दी की गेंद कहा जाता है.
माइक गैटिंग के सामने शेन वॉर्न ने एक फ्लाइटेड गेंद डाली थी, जो शुरू में लगा कि सीधे जा रही है लेकिन गेंद ने हवा में ही दिशा बदली और गैटिंग के लेग स्टंप के पास टप्पा खाई, जिसे खेलने में गैटिंग चूक गए और गेंद वहां से टर्न होते हुए उनका ऑफ़ स्टंप ले उड़ी. अनुमान के तौर पर गेंद 45 डिग्री के कोण पर मुड़ गई. जब भी इस गेंद की बात हुई वॉर्न ने हमेशा यही कहा कि इसमें उनका कोई योगदान नहीं था, ये फ्लूक था.
लेकिन दुनिया को मालूम था कि चमत्कार हो चुका है, गैटिंग को विश्वास नहीं हो रहा था. उनके सामने खड़े ग्राहम गूच ने बाद में गैटिंग की प्रतिक्रिया को बताते हुए कहा था कि गैटिंग को ऐसे लगा कि किसी ने उनके सामने से खाने की प्लेट खींच ली हो.
लेकिन, इस गेंद के करिश्माई गेंद होने की बात सबसे पहले इयन हिली ने बताई थी क्योंकि इसी टेस्ट से सबसे पहले टेस्ट क्रिकेट के मैदान में रिप्ले स्क्रीन लगाने का दौर शुरू हुआ था. इसका रिप्ले पूरी ऑस्ट्रेलियाई टीम ने मैदान में खड़े होकर देखा और हिली ने वॉर्न से कहा कि यह अविश्वसनीय गेंद है.
बाद में ड्रेसिंग रूम में इयन हिली ने कहा कि बीबीसी इस गेंद के रिप्ले को दस बार दिखा चुका है, हर एंगल से दिखा रहा है. बीबीसी के कमेंट्री पैनल में रहे रिची बेनो ने भी कहा था कि गैंटिंग को अंदाज़ा नहीं हो रहा है आख़िर हुआ क्या.
वॉर्न ने इसके बाद कहें तो पीछे मुड़कर नहीं देखा और महज आठ-नौ साल के करियर के बाद वे उस मुकाम तक पहुंच गए, जहां पहुंचना बिल्कुल अकल्पनीय लगता है.
शताब्दी के क्रिकेटरों में चौथे स्थान पर
विज़डन ने 2000 में शताब्दी के क्रिकेटरों के लिए 100 पूर्व खिलाड़ियों और विशषेज्ञों की राय ली थी. इसमें शेन वॉर्न चौथे स्थान पर रहे थे. पहले स्थान पर 100 मतों के साथ डॉन ब्रैडमैन रहे. इसके बाद 90 एक्सपर्ट ने गैरी सोर्बस को वोट दिया था. जैक हाब्स 30 मतों के साथ तीसरे स्थान पर रहे.
जबकि शेन वॉर्न 27 मत के साथ चौथे और विवियन रिचर्ड्स 25 मत के साथ पांचवें स्थान पर रहे थे. इस सूची में सचिन तेंदुलकर कहीं लंबे करियर के बावजूद उस समय में छह मत ही पा सके थे, वे 17वें पायदान पर थे.
ख़ास बात ये भी थी कि उन पांच क्रिकेटरों में जगह पाने वाले वॉर्न इकलौते गेंदबाज़ रहे. दुनिया के मशहूर गेंदबाज़ वसीम अकरम को तीन, कर्टली एंब्रोस और एन डोनाल्ड को एक-एक मत मिला था. रिचर्ड हैडली और इमरान ख़ान 13-13 मतों के साथ दसवें स्थान पर थे.
शेन वॉर्न लगभग 15 साल तक ऑस्ट्रेलियाई क्रिकेट के आधार स्तंभ बने रहे. इस दौरान ग्लेन मैक्ग्रा के साथ उनकी जोड़ी ने दुनिया भर के बल्लेबाज़ों को छकाना जारी रखा. दोनों ने मिलकर टेस्ट क्रिकेट में 1281 विकेट झटके.
इस दौरान ऑस्ट्रेलिया का वर्ल्ड क्रिकेट में दबदबा भी देखने को मिला. वैसे वॉर्न के पूरे करियर में एक मलाल ये ज़रूर हो सकता है कि भारतीय बल्लेबाज़ों के सामने उनका जलवा कभी नहीं चल पाया. पहले टेस्ट में सचिन तेंदुलकर और शास्त्री ने जो उनकी धुलाई की, वो आगे भी जारी रही. बावजूद इसके शेन वॉर्न भारत में खासे लोकप्रिय रहे.