अपने जमाने की एक कामयाब अभिनेत्री है। पति उसका प्रोड्यूसर है। पार्टियों में फोकस बीवी पर ज्यादा रहने से कुढ़ता रहता है। बड़ी बेटी हीरोइन बनना चाहती है। पुराने प्यार को ये हीरोइन भूल नहीं पाई है। क्या कहा? वाकई आपको हिंदी सिनेमा की कोई हीरोइन याद आ गई। हां, जन्मतिथियों और पुण्यतिथियों के आसपास सितारों की कहानियां इन दिनों जो भरपूर पढ़ने को मिलती हैं। लेकिन, ये एक कहानी है जो वेब सीरीज ‘द फेम गेम’ में सच्ची सी लगती है। जिस हीरोइन की आपको याद आई, उसको करीब से जानने वालों के पास उनके आकस्मिक निधन को लेकर भी तमाम कहानियां हैं। यहां सीरीज में पति शक भी करता है और उसे जान से मारने की कोशिश सी भी करता है। हीरोइन की सारी कमाई वह लुटा चुका है। घर गिरवी रख चुका है और अब बस किसी तरह उसकी आने वाली फिल्म हिट होते देखना चाहता है। मामला इस बार बहुत फिल्मी नहीं है।
नेटफ्लिक्स पर रिलीज हुई वेब सीरीज ‘द फेम गेम’ पेंडुलम की तरह आगे पीछे डोलती आगे बढ़ती है। और, इसी तरह धीरे धीरे रिसता रहता है अपने जमाने की नंबर वन हीरोइन अनामिका आनंद का दर्द। एक जगह वह कहती है, ‘जिसको भाई माना, उसी के साथ मेरी शादी कर दी’। सुनते ही कलेजा मुंह को आता है और दिमाग उन कहानियों की तरफ जाता है जिसमें वाकई में ऐसा हो चुका है। या फिर कि जब वह अपने सुपरस्टार प्रेमी संग रात गुजारने के बाद कहती हैं, ‘मुझे इतना एक्साइटेड फील नहीं करना चाहिए। आई एम मैरीड। मेरे बच्चे हैं, मैं क्या करूं?’ रूह को घोंटते दर्द के साथ जमाने के सामने मुस्कुराते रहने वालों की बेहद भावनात्मक कहानी है वेब सीरीज ‘द फेम गेम’।
दमक खोती हीरोइन का पति चमकदार हीरो के साथ एक फिल्म बनाना चाहता है। बीवी मदद भी करती है। फिल्म गरम भी होती है लेकिन पति को पसंद नहीं आ रही। वह दोनों की करीबियों से जलता है। घर पर बच्चों के अपने अलग ही तेवर हैं। बेटी का दावा है, ‘मैं स्टार बनूंगी बिकॉज माई मॉम इज ए स्टार।’ बेटे की रूहानी दुनिया अलग है, जिस्मानी दुनिया अलग। उसे लगता है उसे कोई समझ ही नहीं सकता। हीरोइन की एक मां भी है। उसे लगता है कि उसकी बेटी ने एक प्रोड्यूसर से शादी करके जो इज्जत पाई है, वह उसकी पिछली पुश्तों को कभी नसीब नहीं हुई। सुपरस्टार अनामिका के जीवन में जो भी है, सबके लिए वह सब कुछ करती है और बदले में चाहती है बस थोड़ा सा प्यार, थोड़ा सा सम्मान और थोड़ी सी देखभाल। जो उसे मनीष खन्ना के पहलू में नसीब होती है।
वेब सीरीज ‘द फेम गेम’ का नाम और इसका संगीत छोड़ दें तो इस सीरीज में सब कुछ फर्स्ट क्लास है। माधुरी दीक्षित की अदाकारी का ये नया पैमाना है। मन मारकर जीती एक हीरोइन का किरदार करते समय कई बार लगता है कि वह उसी हीरोइन का रूप बन गई हैं जिनकी निजी जिंदगी से इस सीरीज की कहानी बहुत मेल खाती है। काश, ऐसी कोई फिल्म भी माधुरी को उनके कमबैक पर मिली होती। एक सीन है जिसमें 20 साल पहले अनामिका के साथ काम का मौका पाकर सुपरस्टार बना अभिनेता अपना रुआब दिखा रहा है। अनामिका उस सीन में उसकी मेकअप वैन में उसके कान के पास आकर सर्द लहजे में जो बोलती है, वह बस देख कर ही समझा जा सकता है। और, इसी सीन में मानव कौल की कमजोरी भी सामने आ जाती है। वह कोशिश पूरी करते हैं माधुरी की काबिलियत के साथ कदम से कदम मिलाने की लेकिन माधुरी, माधुरी हैं। जिन्होंने ग्लैमर की दुनिया को करीब से देखा है, वह इस सीरीज के संवाद ‘फिल्में गवाती ज्यादा हैं और कमाती कम हैं’ का सच जानते हैं। क्योंकि, यही हाल इसमें काम करने वालों का भी होता है।
और, सिर्फ माधुरी दीक्षित ही नहीं सीरीज में हर कलाकार अपने अपने मोर्चे पर मुस्तैदी से तैनात है। संजय कपूर ने अरसा पहले फिल्म ‘राजा’ में माधुरी के साथ ही बड़े परदे पर शोहरत का पहला स्वाद चखा था। यहां भी वह अपनी अदाकारी का दम दिखाते हैं। और, ये कहना गलत नहीं होगा कि ऐसा शानदार अभिनय शायद ही संजय ने इसके पहले कभी किया हो। सुहासिनी मुले के लिए ऐसे किरदार करना बाएं हाथ का खेल है। सीरीज में चौंकाने वाला अभिनय किया है अभिनेता जगदीप की बेटी मुस्कान जाफरी और नवोदित अभिनेता लक्षवीर सरन ने। दोनों ने अपने अपने हिस्से की बेचैनी को परदे पर नायाब तरीके से जीकर खूब प्रभावित किया है। राजश्री देशपांडे का किरदार सीरीज में उत्प्रेरक का काम करता है और जब भी वह कैमरे के सामने होती हैं, यूं लगता है कि अब कुछ न कुछ नया मामला खुलने वाला है और ऐसा होता भी है। लेकिन, सीरीज की खोज गगन अरोड़ा को माना जा सकता है। एक अनाथ बच्चे की अपनी ‘आई’ को खोजने की तड़प और उस खोज के रास्ते में उसके किरदार में पल पल आने वाले बदलाव को इस युवा कलाकार ने काबिले तारीफ तरीके से जिया है।
और, ये सब मुमकिन हुआ है सीरीज के निर्देशकों बेजॉय नांबियार और करिश्मा कोहली के धैर्यपूर्ण तरीके से किए गए निर्देशन से। दोनों ने सीरीज को बहुत जमा जमाकर शूट किया है। खुले आसमान के नीचे रखे बर्तन में जैसे बारिश का पानी आहिस्ता आहिस्ता जमा होता है, इस सीरीज का असर भी एपीसोड दर एपीसोड ऐसे ही बढ़ता जाता है। करिश्मा इस सीरीज में कला निर्देशन और कॉस्ट्यूम्स का भी खूब है। धर्मा प्रोडक्शंस की पिछली फिल्म ‘गहराइयां’ से निराश हुए दर्शकों के लिए ये करण जौहर की असल भरपाई है। सीरीज है भी करण जौहर की भव्य सिनेमा वाली ब्रांडिंग के हिसाब की। सीरीज की कमजोर कड़ी अगर किसी एक विभाग को कहा जाए तो वह है इसका संगीत। ‘दुपट्टा मेरा’ जैसे गीतों ने ही माधुरी के कमबैक को फिल्मों में कमजोर किया था। यहां गनीमत रही कि एक इमोशनल सस्पेंस ड्रामा के तौर पर बनी सीरीज में म्यूजिक पर इतना ध्यान दर्शकों का जाता नहीं है। इसके साथ ही रिलीज हुई फिल्म ‘गंगूबाई काठियावाड़ी’ से तुलना करें तो ‘द फेम गेम’ का पलड़ा भारी है।
नेटफ्लिक्स पर रिलीज हुई वेब सीरीज ‘द फेम गेम’ पेंडुलम की तरह आगे पीछे डोलती आगे बढ़ती है। और, इसी तरह धीरे धीरे रिसता रहता है अपने जमाने की नंबर वन हीरोइन अनामिका आनंद का दर्द। एक जगह वह कहती है, ‘जिसको भाई माना, उसी के साथ मेरी शादी कर दी’। सुनते ही कलेजा मुंह को आता है और दिमाग उन कहानियों की तरफ जाता है जिसमें वाकई में ऐसा हो चुका है। या फिर कि जब वह अपने सुपरस्टार प्रेमी संग रात गुजारने के बाद कहती हैं, ‘मुझे इतना एक्साइटेड फील नहीं करना चाहिए। आई एम मैरीड। मेरे बच्चे हैं, मैं क्या करूं?’ रूह को घोंटते दर्द के साथ जमाने के सामने मुस्कुराते रहने वालों की बेहद भावनात्मक कहानी है वेब सीरीज ‘द फेम गेम’।
दमक खोती हीरोइन का पति चमकदार हीरो के साथ एक फिल्म बनाना चाहता है। बीवी मदद भी करती है। फिल्म गरम भी होती है लेकिन पति को पसंद नहीं आ रही। वह दोनों की करीबियों से जलता है। घर पर बच्चों के अपने अलग ही तेवर हैं। बेटी का दावा है, ‘मैं स्टार बनूंगी बिकॉज माई मॉम इज ए स्टार।’ बेटे की रूहानी दुनिया अलग है, जिस्मानी दुनिया अलग। उसे लगता है उसे कोई समझ ही नहीं सकता। हीरोइन की एक मां भी है। उसे लगता है कि उसकी बेटी ने एक प्रोड्यूसर से शादी करके जो इज्जत पाई है, वह उसकी पिछली पुश्तों को कभी नसीब नहीं हुई। सुपरस्टार अनामिका के जीवन में जो भी है, सबके लिए वह सब कुछ करती है और बदले में चाहती है बस थोड़ा सा प्यार, थोड़ा सा सम्मान और थोड़ी सी देखभाल। जो उसे मनीष खन्ना के पहलू में नसीब होती है।
वेब सीरीज ‘द फेम गेम’ का नाम और इसका संगीत छोड़ दें तो इस सीरीज में सब कुछ फर्स्ट क्लास है। माधुरी दीक्षित की अदाकारी का ये नया पैमाना है। मन मारकर जीती एक हीरोइन का किरदार करते समय कई बार लगता है कि वह उसी हीरोइन का रूप बन गई हैं जिनकी निजी जिंदगी से इस सीरीज की कहानी बहुत मेल खाती है। काश, ऐसी कोई फिल्म भी माधुरी को उनके कमबैक पर मिली होती। एक सीन है जिसमें 20 साल पहले अनामिका के साथ काम का मौका पाकर सुपरस्टार बना अभिनेता अपना रुआब दिखा रहा है। अनामिका उस सीन में उसकी मेकअप वैन में उसके कान के पास आकर सर्द लहजे में जो बोलती है, वह बस देख कर ही समझा जा सकता है। और, इसी सीन में मानव कौल की कमजोरी भी सामने आ जाती है। वह कोशिश पूरी करते हैं माधुरी की काबिलियत के साथ कदम से कदम मिलाने की लेकिन माधुरी, माधुरी हैं। जिन्होंने ग्लैमर की दुनिया को करीब से देखा है, वह इस सीरीज के संवाद ‘फिल्में गवाती ज्यादा हैं और कमाती कम हैं’ का सच जानते हैं। क्योंकि, यही हाल इसमें काम करने वालों का भी होता है।
और, सिर्फ माधुरी दीक्षित ही नहीं सीरीज में हर कलाकार अपने अपने मोर्चे पर मुस्तैदी से तैनात है। संजय कपूर ने अरसा पहले फिल्म ‘राजा’ में माधुरी के साथ ही बड़े परदे पर शोहरत का पहला स्वाद चखा था। यहां भी वह अपनी अदाकारी का दम दिखाते हैं। और, ये कहना गलत नहीं होगा कि ऐसा शानदार अभिनय शायद ही संजय ने इसके पहले कभी किया हो। सुहासिनी मुले के लिए ऐसे किरदार करना बाएं हाथ का खेल है। सीरीज में चौंकाने वाला अभिनय किया है अभिनेता जगदीप की बेटी मुस्कान जाफरी और नवोदित अभिनेता लक्षवीर सरन ने। दोनों ने अपने अपने हिस्से की बेचैनी को परदे पर नायाब तरीके से जीकर खूब प्रभावित किया है। राजश्री देशपांडे का किरदार सीरीज में उत्प्रेरक का काम करता है और जब भी वह कैमरे के सामने होती हैं, यूं लगता है कि अब कुछ न कुछ नया मामला खुलने वाला है और ऐसा होता भी है। लेकिन, सीरीज की खोज गगन अरोड़ा को माना जा सकता है। एक अनाथ बच्चे की अपनी ‘आई’ को खोजने की तड़प और उस खोज के रास्ते में उसके किरदार में पल पल आने वाले बदलाव को इस युवा कलाकार ने काबिले तारीफ तरीके से जिया है।
और, ये सब मुमकिन हुआ है सीरीज के निर्देशकों बेजॉय नांबियार और करिश्मा कोहली के धैर्यपूर्ण तरीके से किए गए निर्देशन से। दोनों ने सीरीज को बहुत जमा जमाकर शूट किया है। खुले आसमान के नीचे रखे बर्तन में जैसे बारिश का पानी आहिस्ता आहिस्ता जमा होता है, इस सीरीज का असर भी एपीसोड दर एपीसोड ऐसे ही बढ़ता जाता है। करिश्मा इस सीरीज में कला निर्देशन और कॉस्ट्यूम्स का भी खूब है। धर्मा प्रोडक्शंस की पिछली फिल्म ‘गहराइयां’ से निराश हुए दर्शकों के लिए ये करण जौहर की असल भरपाई है। सीरीज है भी करण जौहर की भव्य सिनेमा वाली ब्रांडिंग के हिसाब की। सीरीज की कमजोर कड़ी अगर किसी एक विभाग को कहा जाए तो वह है इसका संगीत। ‘दुपट्टा मेरा’ जैसे गीतों ने ही माधुरी के कमबैक को फिल्मों में कमजोर किया था। यहां गनीमत रही कि एक इमोशनल सस्पेंस ड्रामा के तौर पर बनी सीरीज में म्यूजिक पर इतना ध्यान दर्शकों का जाता नहीं है। इसके साथ ही रिलीज हुई फिल्म ‘गंगूबाई काठियावाड़ी’ से तुलना करें तो ‘द फेम गेम’ का पलड़ा भारी है।