Sunday Special: एक विश्व प्रसिद्ध ब्रितानी भौतिक विज्ञानी, ब्रह्माण्ड विज्ञानी और लेखक स्टीफन विलियम हॉकिंग (Stephen william hawking) का जन्म 8 जनवरी 1942 का हुआ था। स्टीफन विलियम हॉकिंग कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय (Cambridge University) में सैद्धांतिक ब्रह्मांड विज्ञान केन्द्र के शोध निर्देशक भी थे। उनके परिवार की आर्थिक स्थिति ज्यादा ठीक नहीं थी, लेकिन उनका परिवार एक शिक्षित परिवार था। द्वितीय विश्व युद्ध का वक्त आजीविका अर्जन के लिए काफी चुनौतीपूर्ण था और एक सुरक्षित जगह की तलाश में उनका परिवार ऑक्सफोर्ड (Oxford) आ गया।
बताया जाता है कि स्टीफन विलियम हॉकिंग शुरू में अपनी कक्षा में औसत से कम अंक पाने वाले छात्र थे। लेकिन स्टीफन विलियम हॉकिंग को बोर्ड गेम (board game) खेलना बहुत पसंद था। इनकी गणित (Math) में ज्यादा दिलचस्पी थी। स्टीफन विलियम हॉकिंग ने गणितीय समीकरणों (Mathematical equations) को हल करने के लिए कुछ लोगों मदद लेकर पुराने इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों (Electronic Components) के हिस्सों से कंप्यूटर (computer) बना दिया था।
मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक 11 साल की उम्र में वे स्कूल गए और उसके बाद यूनिवर्सिटी कॉलेज, ऑक्सफोर्ड गए। स्टीफन विलियम हॉकिंग गणित का अध्ययन (Study math) करना चाहते थे। लेकिन यूनिवर्सिटी में गणित सब्जेक्ट नहीं था इसलिए उन्होंने भौतिकी (Physics) अपनाई। ऑक्सफोर्ड में अपने अंतिम वर्ष के दौरान हॉकिंग अक्षमता के शिकार होने लगे।
स्टीफन विलियम हॉकिंग को सीढ़ियां चढ़ने और नौकायन में कठिनाइयों का समाना करना पड़ना शुरूर हो गया था। इसके बाद धीरे-धीरे उनकी यह समस्याएं इतनी बढ़ गई थी कि उनकी जुबान भी लड़खड़ाने लगी थी। स्टीफन विलियम हॉकिंग 21 वर्ष की आयु में Amyotrophic Lateral Sclerosis नामक बीमारी का शिकार हो गए। इस बीमारी की वजह से उनके शरीर के सारे अंग धीरे-धीरे काम करना बंद कर रहे थे। बताया जाता है कि इस बीमारी की वजह से व्यक्ति की जल्दी मृत्यू हो जाती है।
जिंदा लाश समान बन गया शरीर
स्टीफन विलियम हॉकिंग को भी डॉक्टरों ने दो साल का वक्त दिया था। डॉक्टर्स ने कहा था कि वह दो साल से अधिक जीवित नहीं रह सकते हैं। बीमारी की वजह से उनके शरीर के अंग धीरे धीरे काम करना बंद हो गए और उनका शरीर धीरे-धीरे एक जिंदा लाश समान बन गया, लेकिन उन्होंने कभी हार नहीं मानी। वे यात्राएं करते रहे, सार्वजनिक कार्यक्रमों में भाग लेते रहे। पर उन्होंने विकलांगता (Disability) को अपने ऊपर हावी होने नहीं दिया। विकलांगता के कारण उन्होंने अपनी रिसर्च और सामान्य जिंदगी (Normal life) को रूकने नहीं दिया। जैसे जैसे उन्होंने लिखने की क्षमता खोई, उन्होंने प्रतिपूरक दृश्य तरीकों का विकास (Development) किया यहां तक कि वह समीकरणों को ज्यामिति (Geometry) के संदर्भ में देखने लगे।
इस तरह विकलांगता पर विजय पाई
जब हर किसी ने उम्मीद खो दी थी तब स्टीफन विलियम हॉकिंग अपने अटूट विश्वास और कोशिशों के दम पर इतिहास (History) लिखने की शुरुआत कर चुके थे। स्टीफन अपनी अक्षमता और बीमारी (disease) को एक वरदान के रूप में लिया। उनके ख़ुद के शब्दों में वह कहते हैं, मेरी बिमारी का पता चलने से पहले, मैं जीवन से बहुत ऊब गया था। ऐसा लग रहा था कि कुछ भी करने लायक नहीं रह गया है। जब उन्हें अहसास हुआ कि शायद वे अपनी पीएचडी (PHD) भी पूरी नहीं कर पायेंगे। तो उन्होंने अपनी सारी ऊर्जा को अनुसंधान (research) के लिए समर्पित कर दिया।
बताया जाता है कि 21 साल की उम्र में उनकी उम्मीदें शून्य हो गयी थी। उनकी उनकी बीमारी ठीक नहीं हुई और उसने उन्हें व्हीलचेयर पर ला दिया। उन्हें एक कंप्यूटर मशीन (Computer machine) के जरिए से बात करने के लिए मजबूर कर दिया, लेकिन वे कभी रुके नहीं। उन्होंने कहा था कि हालांकि मैं चल नहीं सकता और कंप्यूटर (Computer) के जरिए से बात करनी पड़ती है, लेकिन अपने दिमाग (mind) से मैं आज़ाद (independent) हूं।
74 वर्ष की उम्र में भी वह लगातार अपने शोध कार्य में लगे रहे। स्टीफन विलियम हॉकिंग दुनिया (World) को कई महत्वपूर्ण विचारधाराएं प्रदान की और अंतरिक्ष विज्ञान (Space science) के क्षेत्र में अपना अतुल्य योगदान दिया। स्टीफन विलियम हॉकिंग (Stephen william hawking) अंतरिक्ष (Space) में जाना चाहते है। उनका कहाना था कि उन्हें ख़ुशी होगी कि भले ही उनकी अंतरिक्ष में मौत हो जाए। जीने की इच्छा और चुनौतियों को स्वीकार करने के लिए तत्परता से स्टेफन हाकिंग (Stephen hawking) ने यह साबित कर दिया कि मृत्यु निश्चित है, लेकिन जन्म और मृत्यु के बीच कैसे जीना चाहते हैं वह हम पर निर्भर है।