दिल्ली। विज्ञान और अनुसंधान के लिए रहस्य बने हजारों साल पुराने ममी का सच अब दुनिया के सामने आ चुका है। पुरातत्वविदों ने लगभग 3500 साल पुरानी एक किताब से किसी लाश को ममी बनाने की प्रक्रिया का पता लगाया है। करीब 4 हजार साल पहले से ही प्राचीन मिस्र में ममी बनाने की प्रक्रिया है। यूनिवर्सिटी ऑफ कोपेनहेगन के शोधकर्ताओं को किताब से लाश को ममी बनाने की सबसे पुरानी प्रक्रिया का पता चला है। यह धरोहर के रूप में रखी किताब एक भोजपत्र के रूप में है। इस दुलर्भ पुस्तक को पेरिस में रखा गया है। इस किताब से कई रहस्यात्मक चीजें का तिलिस्म निकलकर सामने आया है।
शव पर लगाते थे विशेष लेप
शव पर लेप को लगाने को बेहद पवित्र कला माना जाता था। लेप लगाने की जानकारी केवल कुछ ही लोगों तक सीमित थी। लेप लगाने की यह कला एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति को ज्यादातर सीधे बतायी जाती थी। शव पर लेप लगाए जाने के बारे में दर्ज साक्ष्य अतिदुर्लभ है। अब तक केवल दो ऐसी किताबें मिली हैं जिसमें मिस्र में शवों को लेप लगाकर ममी बनाने के बारे में जानकारी है। अब पुरातत्वविदों को भोजपत्र पर लिखाी एक पुस्तक में मौजूद एक ऐसी मेडिकल बुक को पढ़ने में सफलता मिली है। इस पुस्तक में ममी बनाने की प्रक्रिया को समझाया गया है। इस किताब में हर्बल मेडिसिन और त्वचा के सूजन की बातें भी दर्ज हैं। इस किताब को हाल ही में यूनिवर्सिटी ऑफ कोपेनहेगन में मिस्र मामलों की विशेषज्ञ सोफी चिओड्ट ने संपादित किया है। इस पुस्तक में सबसे पहले इस्तेमाल किए जाने वाले हर्बल इलाज के बारे में जानकारी है।
लाश को ममी बनाने में लगते थे 70 दिन
इस किताब को पढ़ने वाले के लिए यह जरूरी है कि वह विशेषज्ञ हो ताकि उसे इस प्रक्रिया का पूरा विवरण याद रह सके। इसमें मलहम का इस्तेमाल और विभिन्न तरह की पट्टियों को किस तरह से लगाना है। किताब में शव के ऊपर लेप लगाने के तरीके को बताया गया है। प्राचीन मिस्र के लोग मृतक के सिर के ऊपर एक लाल कपड़ा लगाते थे। इस लाल कपड़े पर कुछ प्लांट आधारित सॉल्यूशन लगा रहता था। इस सॉल्यूशन में सुगंधित पदार्थ और बाइंडर भी लगे रहते थे। इस तैयार कपडे़े का इस्तेमाल बैक्टीरिया रोधी के रूप में होता था। ममी बनाने की प्रक्रिया में 70 दिन लगते थे। शव पर लेप लगाए जाने का काम प्रत्येक चार दिन पर किया जाता था। इस दौरान लाश को सुखाने और उसे बैक्टीरिया रोधी तरल पदार्थ में डाला जाता था।
भोजपत्र पर विषेशताएं हैं दर्ज
भोजपत्र में घरों के इस्तेमाल, एक दैवीय पौधे के धार्मिक महत्व और उसके बीजों के बारे में जानकारी दी गयी। त्वचा के सूजन के इलाज को लेकर जानकारी दी गई है। विशेषज्ञ सोफी ने कहा कि इस किताब से पहले से मौजूद दो अन्य किताबों के तुलना का बेहतरीन मौका मिला है। उन्होंने कहा कि ममी बनाने की इस सबसे प्रक्रिया, प्रथा में से कई बातों को बाद में आई किताबों में जगह नहीं दी गई है। उन्होंने बताया कि इस किताब से पता चला है कि प्राचीन मिस्र के लोगों के लिए 4 नंबर का विशेष महत्व था। शव पर लेप लगाने की प्रक्रिया को पूरा करने के लिए कब्र के पास एक कार्यशाला होती थी। 70 दिन की अवधि को दो भागों में बांटा जाता था। 35 दिनों तक शव को सुखाने के बाद 35 दिन तक उसे लपेटा जाता था।
शव को लेप लगाने के चार दिन बाद उसके अंदर से शरीर के अंगों और दिमाग को निकाला जाता था। इसके बाद आंख भी नष्ट हो जाती थी। 70 दिन की पूरी प्रक्रिया में 68वें दिन ममी तैयार हो जाती थी। शव पर लेप लगाए जाने के दौरान कुल 17 बार जुलूस निकाला जाता था। हर 4 दिन के अंतराल पर शव को कपड़े से ढंका जाता था। सुगंधित पदार्थ के साथ तिनका डाला जाता था ताकि कीड़े और मुर्दाखोर दूर रहें। माना जा रहा है कि यह प्राचीन मिस्र के समय बचाई गई दूसरी सबसे लंबी किताब है। शोधकर्ताओं का कहना है कि यह किताब कम से कम 6 मीटर लंबी है और यह करीब 1450 ईसापूर्व की है।