270,000 से अधिक महिलाओं और 22,000 पुरुषों को जिनमें से अधिकांश स्वदेशी क्वेशुआ समुदाय और निम्न-आय वाले परिवारों से ताल्लुक़ रखते थे उनकी 1996 से 2001 के बीच नसबंदी कर दी गई
पेरू की दक्षिणी हाइलैंड्स के सेंट्रल क्यूस्को में एक अस्पताल के मुर्दाघर में पड़ी सेराफिना ईला क्विस जिंदा हो उठीं, सेराफिना को उनकी नसबंदी ऑपरेशन के दौरान मृत घोषित कर दिया गया था.
वो उस वक़्त 34 साल की थीं और उन्होंने बताया कि 1997 में जो सर्जरी उनकी हुई उसके लिए उन्होंने कभी सहमति नहीं दी थी.
उसी साल, उसी अस्पताल में, विक्टोरिया हुआमैन को कथित तौर पर एनेस्थिशिया (बेहोशी की दवा) दिया गया और जब वह कई घंटों बाद होश में आईं तो पता चला कि महज़ 29 साल की उम्र में ही उनकी नसबंदी कर दी गई थी.
24 साल की रुदेसिंडा क्विला ने अपनी कानूनी लड़ाई में जो बयान दिया है उसके मुताबिक़ उन्हें उनके चौथे बच्चे के जन्म पर जन्म प्रमाणपत्र देने से इनकार कर दिया गया था और शर्त रखी गई थी कि ये प्रमाणपत्र उन्हें तभी दिया जाएगा जब वह नसंबंदी के लिए किए जाने वाली सर्जरी 'ट्यूबल लिगेशन' कराने को तैयार होंगी. जब उन्होंने इनकार किया तो उनके साथ ज़बरदस्ती की गई और उन्हें बेहोश करके उनके हाथ-पैर पर रस्सी से बांध दिए गए.
जब क्विला को कई घंटों बाद होश आया तो अस्पताल के एक स्टाफ़ ने उनसे कहा, "अब वह कभी एक जानवर की तरह बच्चे पैदा नहीं कर पाएगी."
ये बात है साल 1996 की. ये महिलाएं उन हजारों महिलाओं में शामिल हैं जो कहती हैं कि 1990 के दशक में तत्कालीन राष्ट्रपति अल्बर्टो फुजिमोरी की सरकार के जनसंख्या नियंत्रण कार्यक्रम के तहत उन्हें 'जबरन बांझ' बना दिया गया.
अब पहली बार पेरू की एक अदालत ऐसी महिलाओं की आपबीती सुनेगी और इस पर विचार करेगी कि कैसे 25 साल की कानूनी लड़ाई लड़ रही महिलाओं को न्याय और मुआवजा मिले.
स्पेरेंदा ह्युमाया, इन महिलाओं की लड़ाई लड़ने वाली एक पीड़ित संघ की नेता.ये मामला क्या है?
पेरू के स्वास्थ्य मंत्रालय के आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार, 270,000 से अधिक महिलाओं और 22,000 पुरुषों को जिनमें से अधिकांश स्वदेशी क्वेशुआ समुदाय और निम्न-आय वाले परिवारों से ताल्लुक़ रखते थे उनकी 1996 से 2001 के बीच नसबंदी कर दी गई.
स्वैच्छिक सर्जिकल गर्भनिरोधक के नाम से लाया गया जनसंख्या नियंत्रण कार्यक्रम पेरू सरकार का ग़रीबी के प्रति चलाए जा रहे अभियान का हिस्सा था जिसका उद्देश्य ग़रीब परिवारों के बीच शिशु जन्म-दर को कम करन था.
सरकार कहती रही कि ये नसबंदी लोगों की मर्ज़ी से की गई लेकिन 2000 से ज़्यादा औरतों ने बताया कि उनकी नसबंदी जबरन, परेशान कर, ब्लैकमेल कर और धोखे से की गई.
पेरू के अभियोजकों ने फुजिमोरी और उनके मंत्रिमंडल के सदस्यों को सामूहिक परिवार नियोजन कार्यक्रम का ज़िम्मेदार बताया है.
कानूनी टीमों का कहना है कि नसबंदी की ये योजना महिलाओं और पुरुषों दोनों के लिए ही थी ताकि जन्म-दर पर काबू पाया जा सके लेकिन 2002 में कांग्रेस की जांच में कहा गया है कि इस बात के पुख्ता सबूत हैं कि मेडिकल स्टाफ़ पर नसबंदी के लक्ष्य तक पहुंचने का दबाव डाला गया और इसके लिए महिलाओं की सहमति के बिना ही उनकी नसंबंदी की गई.
रिपोर्ट कहती है कि इस योजना में स्वदेशी समुदाय की महिलाओं को टारगेट बनाया गया, ये महिलाएं क्वेशुआ भाषा ही बोलती-समझती हैं. इनमें से कई महिलाओं को सर्जरी के बाद ज़रूरी देखभाल नहीं मिली, कुछ इस सर्जरी के बाद आने वाली स्वास्थ्य संबंधी परेशानियों कारण मर गईं.
पीड़ितों का प्रतिनिधित्व करने वाले कई कैपेंन ग्रुप का मानना है कि राज्य की नीति "भेदभाव और नस्लवाद पर आधारित थी" और ट्यूब-टाइंग ऑपरेशन के कारण कम से कम 40 महिलाओं की मौत हुई.
इस योजना में स्वदेशी समुदाय की महिलाओं को टारगेट बनाया गया, ये महिलाएं क्वेशुआ भाषा ही बोलती-समझती हैं. इनमें से कई महिलाओं को सर्जरी के बाद ज़रूरी देखभाल नहीं मिली, कुछ इस सर्जरी के बाद आने वाली स्वास्थ्य संबंधी परेशानियों कारण मर गईं.'मुझे समझ ही नहीं आया मेरे साथ क्या हुआ'
एसोसिएशन ऑफ़ पेरूवियन वुमेन अफेक्टेड फोर्स्ड स्टरर्लिजेशन यानी एएमपीएईएफ़ संस्था को पीड़ित महिला हुआमेन मे बताया कि "मुझे समझ में ही नहीं आया कि मेरे साथ क्यूस्को के अस्पताल में क्या हुआ. बाद में मुझे और मेरे पति को पता चला कि सर्जरी करके मेरे ट्यूब्स को बांध दिया गया था."
इस संस्था से जिन महिलाओं ने बात की है उनका इस्तेमाल कानूनी बयान के तौर पर किया जा रहा है.
हुआमेन बताती है कि मैं अस्पताल से अपने घर आ गई तो मेरी तबियत ख़राब लग रही थी इसके बाद मैं अपने गांव के ही एक क्लीनिक में गई जहां मुझे पता चला कि मेरी सर्जरी हुई है और ट्यूब बांध कर नसबंदी की जा चुकी है. इसके लिए मेरे पति ने मुझे ज़िम्मेदार माना और मेरे तीन बच्चों को और मुझे छोड़ कर चला गया.
अब मैं ही अपने बच्चों की मां और पिता हूं. मैं ज़्यादातर बीमार रहती हूं, मेरे पेट में दर्द और जलन होती है, मेरा सिर बहुत दर्द होता है. मैं बेचैन हो जाती हूं लेकिन कुछ कर नहीं सकती. मेरे बच्चे मुझे इस तरह बीमार देख कर दुख झेलते हैं.
पेरू के अभियोजकों ने पूर्व राष्ट्रपति एलबर्टो फुजिमोरी और उनके मंत्रिमंडल के सदस्यों को सामूहिक परिवार नियोजन कार्यक्रम का ज़िम्मेदार बताया है.'मैं होश में थी जब मुझे काटा गया'
रुडसिंडा क्विला कहती हैं कि उनके चौथे बच्चे के जन्म के बाद क्यूस्को में डॉक्टरों ने उनसे और उनके पति से कहा कि "वे सूअर की तरह जन्म दे रहे थे."
उन्होंने संस्था को बताया कि, "मुझे नसबंदी कराने के लिए ब्लैकमेल किया गया. मुझे अस्पताल में कहा गया कि अगर मैंने अपनी सर्जरी कराके ट्यूब ना बंधवाए तो मेरे बच्चे का जन्म प्रमाणपत्र मुझे नहीं दिया जाएगा."
"मेरे पति जो खेतों में काम कर रहे थे उन्हें पुलिस वाले उठा कर अस्पताल लाए और जबरन सहमति पत्र पर दस्तख़्त करने को कहा गया. जब उन्होंने इनकार किया तो उन्हें गिरफ़्तार करने की धमकी दी गई."
क्विला ने बताया कि वह डर गई थी और क्लिनिक से भागने की कोशिश की, लेकिन उन्हें पकड़ लिया गया और उसके हाथ और पैर बंधे गए औऱ उन्हें एनेस्थिशिया का इंजेक्शन दिया गया था.
उन्होंने बताया, "मैं पूरी तरह बेहोश भी नहीं हो सकी थी जब उन्होंने मेरे पेट को काटा. मुझे ज़ोर से वो दर्द महसूस हुआ और मैं चिल्लाई लेकिन मुझे मेरी बाहों के सहारे ज़ोर से पकड़ा गया था. इसके बाद मुझे दूसरा इंजेक्शन दिया गया. इसके बाद मैं दोपहर में जागी."
"कुछ दिनों बाद मेरे घाव में संक्रमण हो गया. मैं अपने पति के साथ अस्पताल गई. वहां नर्स मुझे इलाज़ ही नहीं देना चाह रही थीं. उन्होंने मेरे पति की बेइज़्ज़ती की और उन्हें जानवर तक कह दिया. मेरे घावों को भरने में लंबा वक़्त लगा, क्योंकि मैं अस्पताल जाने से डरने लगी थी."
इस मामले में इतना वक़्त क्यों लग रहा है?
इन महिलाओं की कहानियां 20 साल पुरानी हैं लेकिन ये अब पहली बार अपनी कहानियां लेकर पेरू के न्यायालय में पहुंची हैं.
इंटर-अमेरिकन कमीशन ऑफ ह्यूमन राइट्स (IACHR) द्वारा जांच के लिए कहे जाने के बाद, अब पेरू ने मारिया ममेरीता मेसान्ज़ा शावेज़ की मौत के पीछे राज्य को ज़िम्मेदार माना है.
33 साल की मारिया एक स्थानीय समुदाय से आती थी. साल 1998 में ऑपरेशन के बाद ज़रूरी देखभाल ना मिलने के कारण उनकी मौत हो गई.
एक्टिविस्ट्स ने कहा है कि पीड़िता को ऑपरेशन के लिए मजबूर किया गया था. मामले को शुरू में प्रांतीय अभियोजक टाल रहे थे लेकिन साल 2010 में इंटर-अमेरिकन कमीशन ऑफ ह्यूमन राइट्स ने पेरू से इस मामले की जांच करके और मौत के लिए ज़िम्मेदार दोषियों को सज़ा देने को कहा.
बीते सालों में, फुजिमोरी और उनके पूर्व स्वास्थ्य अधिकारियों के ख़िलाफ़ तीन आपराधिक मामले की जांच शुरू की गई है लेकिन सबूतों के अभाव का हवाला देकर जांच में देरी की जा रही है.
पूर्व राष्ट्रपति बार बार ये दावा करते हैं कि जनसंख्या नियंत्रण कार्यक्रम में वे सीधे तौर पर शामिल नहीं थे लेकिन साल 2002 में कांग्रेस कमीशन की रिपोर्ट के मुताबिक ऐसे पुख़्ता सबूत मिले हैं कि पूर्व राष्ट्रपति फुजिमोरी ने स्वास्थ्य कर्मचारियों पर टारगेट पूरा करने का दबाव बनाया था.
2018 में, अभियोजकों ने 2,074 पीड़ितों (जिनमें से पांच की मौत हो चुकी है) के आरोपों के आधार पर उन्हें और पूर्व स्वास्थ्य मंत्रियों को जबरन नसबंदी का आरोपित बताया.पूर्व राष्ट्रपति भ्रष्टाचार और मानवाधिकारों के हनन के मामलों में 2007 से जेल में हैं, लेकिन उन्हें 2014 में नसबंदी कार्यक्रम से जुड़े हर आरोपों से क्लीनचिट दे दी गई थी.
2018 में, अभियोजकों ने 2,074 पीड़ितों (जिनमें से पांच की मौत हो चुकी है) के आरोपों के आधार पर उन्हें और पूर्व स्वास्थ्य मंत्रियों को जबरन नसबंदी का अभियुक्त बताया.
लेकिन अदालत की सुनवाई इस साल जनवरी में योजनाबद्ध तरीके से आगे नहीं बढ़ सकी, क्योंकि क्वेशुआ भाषी महिलाओं की मदद के लिए कोई अनुवादक नहीं मिल सका था, इनमें ज़्यादातर महिलाएं स्पैनिश नहीं बोल सकती है.
'शर्मनाक देरी'
एसोसिएशन ऑफ़ पेरूवियन वुमेन अफेक्टेड फोर्स्ड स्टरर्लिजेशन संस्था की प्रवक्ता मारिया एस्तेर मोगोलोन ने बीबीसी को बताया कि ये देरी 'शर्मनाक' है.
"25 साल हो गए जब जबरन नसंबदी शुरू की गई, ये केस 16 सालों से अभियोजकों के दफ्तर में पड़ा रहा अब इसे दोबारा खोला जा रहा है. ये मानवता के खिलाफ़ किया जाने वाला अपराध है."
अंतराष्ट्रीय कानून में इस तरह जबरन नसंबदी करना अपराध माना जाता है.
पिछले साल एएमपीएईएफ़ संस्था ने पेरू के खिलाफ संयुक्त राष्ट्र की एक कमेटी एलिमिनेशन ऑफ ऑल फॉर्म्स ऑफ डिस्क्रिम्नेशन अगेंस्ट वूमेन (CEDAW) में शिकायत दर्ज की थी, जिसमें मांग की गई थी कि देश जबरन नसबंदी के मामले में जांच दोबारा शुरू करे.
मोगोलोन ने कहा, "ये देरी इसलिए हो रही है क्योंकि इसमें राजनैतिक इच्छाशक्ति की कमी है, क्योंकि लोगों में मनवाधिकारों की समझ में कमी है. पीड़ितों के प्रति संवादना की कमी हैं उन्हें नज़रअंदाज़ किया गया."
आधारिकारिक तौर पर साल 2015 में ऐसी महिलाओं के लिए आधिकारिक रजिस्टर खोला लगा और अब तक 7200 महिलाएं अपनी कहानियों के साथ आगे आ चुकी है.
25 सालों से न्याय के लिए लड़ रही महिलाएंक्या इन महिलाओं को मुआवज़ा मिलेगा?
अब जब ये महिलाएं कोर्ट में अपनी कहानियां लोगों को बताएंगी तो जज ये तय करेंगे कि केस किस दिशा में आगे बढ़ेगा.
पेरू की धीमी गति वाली न्याय प्रणाली का मतलब है कि उन्हें शायद ही जल्द इस मामले में फ़ैसला मिले.
साल 2004 में पेरू के ट्रूथ एंट रिकॉन्सिलेशन कमीशन ने 1980 और 1990 के दशक में माओवादी छापेमारी के कराण आंतरिक संघर्ष के दौरान हुए अपराधों पर अंतिम रिपोर्ट प्रकाशित की थी. इस साल की शुरुआत में, पेरू की कांग्रेस ने इसे ध्यान में रखते हुए यौन अपराधों के पीड़ितों को शामिल करने के लिए कानून में बदलाव किया है. इससे इन पीड़ितों के बीच भी आशाएं बढ़ी हैं.
हालांकि मोगोलोन का कहना है कि इस संभावना को अब न्याय मंत्रालय चुनौती दे रहा है .उनका तर्क है कि नसबंदी कार्यक्रम आंतरिक संघर्ष के संदर्भ में नहीं हुआ था.
मोगोलोन बीबीसी से कहती हैं, "जबसे ये कानून बदला है हमें पीड़ितों को मुआवज़ा देने के लिए राजनीतिक इच्छाशक्ति नज़र नहीं आई. पहले वे कहते थे कि उनके पास ऐसा करने का कोई कानूनी आधार नहीं है. अब वह कह रहे हैं कि वह इसपर गौर ही नहीं करना चाहते."
"इन महिलाओं में गुस्सा है, न्याय के लिए 25 साल का संघर्ष, कई महिलाएं जो न्याय की लड़ाई लड़ते हुए मर गईं, कई ग़रीबी में जिंदा हैं. देश ने इन महिलाओं को नज़र अंदाज़ कर दिया है. वो एहसान नहीं मांग रही हैं वो अपने अधिकार मांग रही हैं."
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