प्रयागराज: अमरोहा के बावनखेड़ी में तकरीबन 13 साल पहले अपने माता-पिता समेत परिवार के सात लोगों के सनसनीखेज कत्ल के मामले में फांसी की सजा पाने वाली शबनम के प्रेमी सलीम को भी मौत की सजा मिली हुई है. सलीम इन दिनों प्रयागराज की नैनी सेंट्रल जेल में बंद हैं. डेथ वारंट जारी होने पर सलीम को इसी जेल में फांसी पर लटकाया जाएगा. शबनम की तरह ही सलीम के पास भी फांसी की सजा से बचने के कानूनी विकल्प अब न के बराबर बचे हैं.
सलीम की खुद की जिंदगी दांव पर है, लेकिन उसे खुद से ज्यादा अपनी अनारकली की जिंदगी की फिक्र है. वो दिन-रात खुदा की बारगाह में सजदे कर इबादत करते हुए उनसे शबनम की जिंदगी बख्शने की मिन्नतें करता रहता है. शबनम को लेकर सलीम की बेचैनी और तड़प को देखते हुए जेल प्रशासन ने उसे हाई सिक्योरिटी बैरक में ट्रांसफर कर दिया है. शबनम की जुदाई और जेल की तन्हाई ने सलीम को शायर भी बना दिया है. सलीम ने कुछ दिनों पहले जेल के सीनियर सुप्रिटेंडेंट को एक चिट्ठी भी लिखी है. प्रयागराज की नैनी सेंट्रल जेल ने डेथ वारंट जारी होने की सूरत में सलीम को फांसी दिए जाने की तैयारी भी शुरू कर दी है. बरसों से बंद पड़े फांसी घर को नये सिरे से तैयार करा दिया गया है. नैनी सेंट्रल जेल में कैसे बीत रही है सलीम की जिंदगी, शबनम की जुदाई में कैसे तड़प रहा है सलीम और उसे फांसी देने की क्या है तैयारी, जानिए हमारे 17 प्वाइंट्स की इस Exclusivve रिपोर्ट में. हर प्वाइंट में आपको पढ़ने को मिलेगी दिलचस्प जानकारी.
खुद को मिली है सजा-ए-मौत, फिर भी अपनी अनारकली के लिए तड़प रहा है जेल बंद ये सलीम
10 महीने के दुधमुंहे बच्चे समेत सात लोगों के कत्ल के मामले में शबनम के आशिक सलीम को भी मौत की सजा मिली हुई है. अमरोहा की सेशन कोर्ट ने एक जून 2009 को सलीम और शबनम को फांसी की सजा सुनाई थी. इसके बाद हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट ने भी इनकी सजा को बरकरार रखा. सलीम इन दिनों प्रयागराज की नैनी सेंट्रल जेल में बंद है. यहां वो खुद की जिंदगी से ज्यादा अपनी महबूबा शबनम की फांसी को लेकर ज्यादा परेशान है. वो शबनम के बारे में हर जानकारी पाना चाहता है. उससे मिलने और उसकी सूरत देखने के लिए तड़पता रहता है. उन अखबारों और मैग्जीनों को संभालकर अपने पास रखता है, जिसमें शबनम की कोई तस्वीर या उससे जुड़ी खबर छपी होती है.
शबनम के लिए उसकी मोहब्बत और तड़प अब भी पहले जैसी ही है. उसकी खुद की जान सांसत में है, फिर भी शबनम की ज़िंदगी बचाने के लिए ज़्यादा इबादत करता है. सलीम ये जानने के लिए भी बेकरार रहता है कि शबनम अब उसके बारे में क्या सोचती है. वो चाहता है कि उसे भले ही फांसी की सजा हो जाए, पर शबनम की सजा जरूर बदल जानी चाहिए. शबनम को लेकर सलीम की इसी बेकरारी और तड़प की वजह से प्रयागराज का जेल प्रशासन खास सतर्कता बरत रहा है. वो दूसरे बंदियों से अक्सर ही शबनम के बारे में बातें करना पसंद करता है. दूसरे कैदियों से भी वो शबनम की सलामती के लिए दुआ करने को कहता है. शबनम की दया याचिका खारिज होने के बाद से वो पूरे दिन गुमसुम सा रहता है.
शबनम की जुदाई और जेल की तन्हाई ने सलीम को बना दिया शायर
प्रयागराज की नैनी सेंट्रल जेल में बंद सलीम ज़्यादा पढ़ा-लिखा नहीं हैं. वह महज़ 5वीं पास बताया जाता है. ये अलग बात है कि अलग-अलग जेलों में रहते हुए उसने नए सिरे से हिन्दी और अंग्रेजी की बेसिक पढ़ाई ठीक से कर ली है. कम पढ़ा-लिखा होने के बावजूद सलीम इन दिनों जेल में कविताएं लिखता है. साथी बंदियों के मुताबिक उसने तमाम शेर भी लिखे हैं. उर्दू के लफ्जों के इस्तेमाल वाले शेरों को वो हिन्दी में कागज पर लिखता है. इनमें से कुछ शेर उसकी अपनी महबूबा शबनम और उसकी जुदाई पर हैं तो कुछ दूसरे मौजू यानी विषयों पर. पिछले दो सालों में उसने तकरीबन दर्जन भर कविताएं भी लिखी हैं. हालांकि इन कविताओं में तुकबंदी ही ज़्यादा है.
जेल के सीनियर सुप्रिटेंडेंट पीएन पांडेय के मुताबिक सलीम को उसके हालात ने कवि और शायर बना दिया है. उनके मुताबिक वो अपनी रचनाएं अक्सर हाई सिक्योरिटी बैरक में बंद दूसरे बंदियों को भी सुनाता है. अपनी रचनाओं के लिए उसने अलग फाइल भी बना रखी है. कहा जा सकता है कि सात खून करने के बाद भी प्रेमिका शबनम से मिली जुदाई और जेल की तन्हाई ने ही उसे रेडीमेड शायर और कवि बना डाला है. अपनी ये रचनाएं वो शबनम तक भिजवाने के साथ ही इसे किसी मैगजीन या रिसाले में छपवाने की भी फिराक में है.
शबनम को फांसी से बचाने के लिए दिन-रात करता रहता है इबादत
शबनम के इश्क में सात खून करने से पहले सलीम ज़्यादा धार्मिक नहीं था. वो सिर्फ जुमे की नमाज़ पढता था और कभी कभार ही रोज़े रखता था. जेल के शुरुआती सालों में तो वो पूरी तरह नास्तिक सा हो गया था, लेकिन हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट से भी फांसी की सज़ा बरकरार रहने के बाद वो पूरी तरह डर गया है. उसे खुद की ज़िंदगी की फ़िक्र तो होने ही लगी है, लेकिन उससे ज़्यादा वो अपनी अनारकली यानी शबनम के जीवन को लेकर परेशान रहता है. शबनम के साथ ही खुद की सलामती के लिए सलीम अब पूरी तरह धार्मिक हो चुका है.
प्रयागराज की जेल की हाई सिक्योरिटी बैरक में वो रोज़ाना पांच वक़्त की नमाज़ अदा करता है. कुरान की तिलावत करता है. खुदा की बारगाह में सजदे कर तिलावत करता है. तस्वीह के ज़रिए अल्लाह के नाम का जाप करता है. ज़्यादातर वक़्त खुदा की इबादत में बिताता है. अपने सिर पर कभी वो रुमाल बांधे रहता है तो कभी टोपी लगाकर रखता है. जेल के सीनियर सुप्रिटेंडेंट पीएन पांडेय के मुताबिक़ ये भारतीय संस्कृति और इंसानी स्वभाव में है कि मुश्किल वक़्त में हर तरफ के दरवाजे बंद होने के बाद लोग भगवान को ही याद करते हैं. सलीम को भी ऐसा करने से आत्मबल मिलता है. खुद की और शबनम की ज़िंदगी की सलामती के लिए ही वो दिन-रात इबादत करते हुए मिन्नतें करता रहता है.