नई दिल्ली : दहेज हत्या के आरोप में बाप और बेटा 28 साल की क़ानूनी लड़ाई के बाद सुप्रीम कोर्ट से बरी हुए. दहेज हत्या की दफ़ा 304B के मामले में उत्तराखंड हाईकोर्ट ने पिता और उसे बेटे को सात की सज़ा सुनाई थी, जिसे सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दिया
5 जून 1991 को एक महिला ने खुद को आग लगाकर आत्महत्या कर ली थी. तब तक उसकी शादी को सात साल नहीं हुए थे. महिला के मायके वालों की शिकायत पर पुलिस ने महिला के पति और ससुर को आत्महत्या के लिए उकसाने के आरोप में गिरफ़्तार किया. बाद में कोर्ट ने मामले को दहेज हत्या के आरोप में तब्दील कर दिया.
उत्तराखंड हाई कोर्ट ने आरोपियों को दहेज हत्या का दोषी पाया, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने फैसले में कहा कि मामले में ऐसा कोई साक्ष्य सामने नहीं आया, जिससे साबित होता हो कि मरने वाली महिला को उसके ससुराल वाले सताते थे और दहेज मांगते थे.
दरअसल, यह क़ानून है कि अगर किसी महिला की उसकी शादी के सात सालों के अंदर संदिग्ध हालात में मौत हो जाती है या वह आत्महत्या कर लेती है तो मायके वालों की शिकायत पर पुलिस ससुराल वालों के ख़िलाफ़ दहेज हत्या का मामला दर्ज कर उनकी गिरफ़्तारियां कर लेती है.
दरअसल, यह क़ानून है कि अगर किसी महिला की उसकी शादी के सात सालों के अंदर संदिग्ध हालात में मौत हो जाती है या वह आत्महत्या कर लेती है तो मायके वालों की शिकायत पर पुलिस ससुराल वालों के ख़िलाफ़ दहेज हत्या का मामला दर्ज कर उनकी गिरफ़्तारियां कर लेती है.